April 11, 2007

कायर होते हैं बेनाम

कई दिनों से सोच रहा था कि बेनामों के बारे में कुछ लिखा जाए....क्‍योंकि बगैर मां बाप या आईडी के घूम रहे इन बेनामों की भी सुध लेना जरुरी है। क्‍योंकि सरकार भी स्‍ट्रीट चाइल्‍डों के लिए चलते फिरते स्‍कूल चलाती है।
हालांकि, इन बच्‍चों के नाम होते हैं, फिर चाहे पूरे और सलीके के नाम न हो। ये नाम भी हो सकते हैं...कालू, धौलू, लालू..या भौंदू....लेकिन नाम जरुर होता है। लेकिन इंटरनेट यूजरों के नाम नहीं है, यह जानकर अचरज होता है कि क्‍या ये मैटरनिटी अस्‍पतालों के बजाय इंटरनेट पर पैदा हुए हैं क्‍या, जहां एक अदद मां बाप न मिल सके। इंटरनेट पर बच्‍चों को गोद लेने संबंधी भी विज्ञापन लगे रहते हैं तो फिर ये बेनाम वहां क्‍यों नही एप्‍लाई कर देते ताकि कोई इन्‍हें दत्‍तक ले लें और नाम रखे दे..फिर चाहे नाम इनका भौंदू ही क्‍यों न रखा जाए। मेरा ख्‍याल है कि अगर ये बेनाम एक परखनली ही पकड़ लेते तो परखनली शिशु होने का गौरव इन्‍हें मिल जाता। अपने बॉयोडाटा में भी लिख सकते थे कि भारत का दूसरा परखनली शिशु...तीसरा....पांच सौवां...आदि।

कल नारद पर देखा कि भाई प्रमोद सिंह ने लिखा कि इन बेनामों का बाप कौन है ? मजा आ गया। चिट्ठेकारों की दुनिया में मैं पुराना नहीं हूं और पुराना होना भी नहीं चाहता। हमेशा नया रहना चाहता हूं। ब्‍लॉग पर परोसी सामग्री पर टिप्‍पणियां मिलती हैं...खट्टी...मिठ्ठी...कड़वी..कसैली...सुंदर। अच्‍छा लगता है टिप्‍पणियां देखकर, पढ़कर। दूसरे लेखकों के ब्‍लॉग और टिप्‍पणियां भी पढ़ता हूं, काफी नई चीजें सीखने, जानने को मिल रही हैं। नए दोस्‍त बन रहे हैं। मैं अपने ब्‍लॉग पर आने वाली सभी टिप्‍पणियों को जस का तस प्रकाशित करने में विश्‍वास करता हूं और सभी को प्रकाशित भी की है लेकिन कल एक बेनाम टिप्‍पणी को जानबूझकर रोक दिया। दूसरे ब्‍लॉगों पर भी देखता हूं बेनाम टिप्‍पणियां। जो बेनाम टिप्‍पणी मैंने प्रकाशन से रोकी वह यह थी :

कमल जी, कृपा करके ब्लॉग लिखें, इधर-उधर की सामग्री उठाकर दिन भर में दस-बीस पोस्ट ठोक देना कोई अच्छी बात नहीं है, यह आपकी आज़ादी का मामला भी नहीं है. मुझे ऐसा लिखने पर इसलिए मजबूर होना पड़ रहा है क्योंकि आपके इस अरचनात्मक लेखन की बाढ़ की वजह से अच्छी पोस्ट्स एक-एक करके नीचे से निकलती जाती है, अपने से बेहतर लिखने वालों की पोस्ट की असमय मृत्यु का पाप अपने सिर मत लीजिए. बाक़ी लोग भी नेट सर्फ़ करते हैं और आप जो परोस रहे हैं उसके लिए आपकी ज़रूरत नहीं है, वह यूँ ही उपलब्ध है. बुरा न मानिएगा और ध्यान से सोचिएगा.

मेरा निजी तौर पर मानना है कि जब हम लिखते हैं तो या टिप्‍पणी करते हैं और वह सच है, चाहे कितनी ही कड़वी हो या मीठी सीधे अपने नाम से लिखनी चा‍हिए। बेनाम का तो सीधा मतलब है कायर। टिप्‍पणी देते समय जो अच्‍छा लग रहा है वह लिख रहे हैं तो फिर बेनाम क्‍यों। हिम्‍मत होनी चाहिए अपना नाम बताने की। यह मत सोचिए बुरा लगेगा या अच्‍छा। सच्‍चा दोस्‍त वही है जो सच कहें अब चाहे कड़वी बात हो या मीठी। मैं सभी बेनामों से कहना चाहूंगा, अनुरोध करूंगा कि वे अपनी‍ टिप्‍पणी में नाम जरुर दें अन्‍यथा बेनाम टिप्‍पणी के प्रकाशन को रोकना बेहतर लगेगा। सभी ब्‍लॉगर मित्रों से अनुरोध है कि वे भी बेनामों की‍ टिप्‍पणियों को टिप्‍पणी पाने की लालसा में प्रकाशित न करें तो ठीक रहेगा।

9 comments:

Anonymous said...

बेनामी टिप्पणी या तो खीज निकालने के लिए होती है, या कोई कड़वी बात कहने के लिए.
को अनर्गलप्रलाप हो उसे प्रकाशीत न करें.

रही बात एक दिन में बहुत सारे प्रविष्टीयाँ लिखने की तो इसका निर्णय आपके विवेक पर छोड़ा जाना चाहिए.

चलते चलते said...

संजय जी आपकी टिप्‍पणी ने काफी राहत पहुंचाई है। मैं यहां एक बात फिर से कहना चाहूंगा कि सच्‍चे मित्र या हितैषी वहीं हैं जो कड़वी बात भी साफ साफ कह दें। रही बात पोस्‍ट की तो मैं वाहमनी और जर्नलिस्‍टकमल दोनों ब्‍लॉगों पर रोजाना औसतन तीन से अधिक प्रविष्टियां डाल भी नहीं पाता क्‍योंकि जीवन में अनेक कार्य करने हैं। लेकिन टिप्‍पणी करने वाले बेनाम जी लिख दिया दिन भर में दस-बीस पोस्ट ठोक देना कोई अच्छी बात नहीं है, यह आपकी आज़ादी का मामला भी नहीं है।

Anonymous said...

SAHI KHABAR KA CHAYAN BHI RACHNATMAKAT [CREATIVITY] KA EK PAKSH[ASPECT]HAI.SOFT NEWS JAHAN DIMAG KO THANDAK DETI HAI WAHIN KUCHH SAMACHAR SOCHANE KO MAJBUR KARTE HAIN.

RACHNATMAKATA [CREATIVITY]KI PARIBHASHA DENE KI SWATANTRATA SAB KO HAI.

NAMON-BENAMON KO NAZAR ANDAZ KARTE HUYE LEKHAN JARI RAKHEN.

K. KARTIKEY
BHOPAL, MP

अभय तिवारी said...

बेनाम वाली चर्चा में मैं कमल जी से सहमत हूँ.. एक दूसरी बात में कुमार कार्तिकेय और उनके जैसे दूसरे साथियों से कहना चाहता हूँ.. कि भाई आप हिन्दी ब्लॉग पर हिन्दी सामग्री देखने पढ़ने आये हैं.. अपनी राय भी रखते हैं आप.. पर रोमन में क्यों.. देवनागरी में लिखिये ना.. क्या परेशानी है.. नारद से जुड़े महानुभावों ने लिखने के रास्ते आसान बनायें हैं.. गूगल भी सुविधा दे रहा है.. दिक्कत क्या है.. निजी तौर पर मुझे आँख में चुभता है.. जबकि मैंने खुद तकरीबन दस साल तक रोमन में हिन्दी लिखी है.. शायद इसीलिये.. थोड़ा रहम करें हम पर.. हिन्दी पर..और चिट्ठेवाले इस पर भी एक नीति बनायें.. रोमन में लिखी प्रतिक्रिया को ना प्रकाशित करें.. सोचें इस बारे में..

गरिमा said...

कमल जी, बेनामा को लेकर मै आपसे पूरी तरह सहमत नहीं हूँ, क्योकि अधिकतर लोगो नये भी होते है जो सीखते सीखते सीख जाते हैं, पहले मैने भी कई जगह बेनाम टिप्‍पणी दी है, सीधा सा कारण था, कि तब मुझे संजाल और कम्पयुटर के बारे मे तनिक भी जानकारी नही थी, पर अब जब धीरे-धीरे कुछ समझ मे आना लगे है, बेनाम जवाब नही देती।

हाँ जहा तक तीखी टिप्पणी कि बात है, मै तीखी टिप्‍पणी से जहा तक हो सके बचती हूँ, क्युँकि जरूरी नही कि जो विषय वस्तु मुझे नही अच्छा लगा, किसी और को भी ना पसन्द हो, सबकी अपनी पसन्द होती है, और मेरा मानना है कि हमे एक दुसरे कि पसन्द का सम्मान करना चाहिये, और ना कर सके तो कम से कम अपमान तो नही करना चाहिये।
ये मेरा अपना नजरिया है।
:)

Anonymous said...

अनाम टिप्पणियां अगर तारीफ़ की हैं तो प्रकाशित होनी चाहिये। अगर बुराई है और लेखक की है तो प्रकाशित करना लेखक के हित में है। लेकिन अगर भद्दी भाषा प्रयोग की है और आपके ब्लाग पर दूसरों की बुराई है तो टिप्पणी प्रकाशित करने के पहले सोचना चाहिये। जैसा कि गरिमाजी ने कहा कभी-कभी अनजाने में भी हो जाता है ऐसा। वैसे अनाम टिप्पणी करने से यथासम्भव बचना चाहिये। यह मेरा मानना है! :)

Anonymous said...

बेनामी टिप्पणीया यदि भद्दी हो या व्यक्तिगत आक्षेप वाली हो तो उन्हे हटाना ठीक है। लेकिन यदि वे प्रसंशा की या स्वस्थ आलोचना की हो तो मुझे इसमे कुछ भी गलत प्रतीत नही होता है।

Anonymous said...

Kamal ji ke manch se ABHAY ji ko PUKAR...

ABHAYji ko bahut-bahut dhanyavad jo unhone chubhte huye habdon ko padha.

Niji-taur par mujhe ANKHON main hi NAHIN MAN-MASTISHK dono main bhi Roman lipi main Hindi Chubhati Hai.

Devngari lipi ki Hindi typing main sikh raha hoon.

Raha Roman main liki tippani[comment]ko prakashit na karne ka sujhav to yeh koi hal nahin hai.

Hindi ke khetra ko hum sankirn[narrow]nahin banana chahiye.

Jaisa ki KAMAL ji ke blog ki hits se gyat hota hai ki unke pathak videshon ya Dakshin Bharat main bhi hain. Ho sakta hai ve devnagari na jante huye keval Hindi padh sakte ho...!

Tab kya yeh sujhav Hindibhashiyon ko Hindi lekhakon se door nahin karega.
Haan! Sabko devnagri sikhane ke liye protsahan dena hoga na ki shisht tippani[comment] preshit karne jaise maulik swatantrata se vanchit karne ke liye hindi lekhakon ka aavhan karna.

Rahi niti ki bat...
To niti vahi sahi hoti hai jo sabi ko samahit kare.
Anyatha ubharte huye LOK MANCH ka vikhandan[division] karne ke kai tarike prachlit ho jayenge.

Kumar kartikey
Bhopal MP

अभय तिवारी said...

कुमार जी आप भोपाल से हैं.. हिन्दी भी जानते हैं.. और देवनागरी भी.. तो दक्षिण भारत के कल्पित पाठकों के पीछे क्यों छिप रहे हैं..हिन्दी मरियल अवस्था में है.. उसके अपने जानने बोलने वाले अंग्रेज़ी में लिखना पढ़्ना सोचना चाहते हैं.. हम उस समाज उस दौर में हैं जहाँ हिन्दी ठीक से ना पढ़ पाना लिख पाना आपकी कुलीनता का परिचय हो सकता है.. आप गैर हिन्दी भाषी पाठकों की बात कर रहे हैं..? ऐसी स्थिति आये तो उन्हे रोमन में लिखने की आज़ादी होनी चाहिये.. चलिये माना.. पर आप बताइये.. आप किसी तमिल ब्लॉग पर जा कर बंगला लिपि में टिप्पणी करेंगे.. अंग्रेज़ी ब्लॉग पर रशियन में करेंगे..फिर क्यों आप आमादा हैं कि नहीं हिन्दी ब्लॉग पर सिर्फ़ देवनागरी में टिप्पणी की माँग कर के मैं हिन्दी का दायरा सीमित करने की मूर्खता जैसा कोई काम कर रहा हूँ..आप अंग्रेज़ी टाइप कर लेते हैं.. देवनागरी में टाइप करने में सीखने जैसा क्या है.. बारहा में कीजिये.. हिन्दी टूलकिट डाउनलोड कीजिये.. थोड़ा प्रयत्न कीजिये.. बुरा मत मानिये..अपनी भाषा और लिपि के सम्मान की खातिर मेरी दो बातों से आहत मत होइये.. देवनागरी में लिखिये..