August 31, 2007

मुंबई पुलिस सीखाती है कार चोरी करना

मुंबई पुलिस सीखाती है कार चोरी करना.....इस शीर्षक का देखकर चौंके नहीं बल्कि यह सच है। मुंबई पुलिस ने जहां पिछले दिनों कहा था कि वह महानगर में बढ़ती कार चोरी को रोकने के लिए कारगर कदम उठाएगी और जल्‍दी ही कार चोरों के साथ यह जानने का प्रयास करेगी कि वे कार चोरी के लिए कैसे कैसे तरीके अपनाती है ताकि लोगों को बताकर कार चोरी को थामा जा सके। लेकिन मैंने खुद एक नजारा ऐसा देखा कि जहां पुलिस ही कार चोरी का तरीका आम पब्लिक को बता रही थी। बात मेरे कार्यालय के बाहर की है, मेरा कार्यालय मुंबई के उपनगर माटुंगा रोड में न्‍यू एरा हाउस में है। कार्यालय के बाहर मैं लंच के बाद तरोताजा होने के लिए कुछ देर के लिए खड़ा था। तभी वहां मुंबई ट्राफिक पुलिस की टोइंग गाड़ी जिसके सहारे नो पार्किंग जोन में खड़ी गाडि़यों को पुलिस चौकी ले जाया जाता है, आई और एक मारुति वैन को उठाने का प्रयास किया।

मुंबई ट्राफिक पुलिस के कांसटेबल के साथ चार पांच लड़के भी थे, जो इस टोइंग गाड़ी के साथ दुपहिया, चौपहिया उठाने के लिए हमेशा रहते हैं। इस मारुति वैन को वे चाहते थे वैसे ही उठाकर ले जा सकते थे। लेकिन मेरे सहित वहां खड़े तकरीबन 20 व्‍यक्तियों ने देखा कि ट्राफिक कांसटेबल के कहने पर तीन लड़कों ने प्‍लास्टिक की सी पतली पत्‍ती निकाली और ड्राइवर साइड के दोनों विंडों की ओर उन्‍हें घुसेड़कर गाड़ी का लॉक दस सेकंड में खोल दिया। इस लॉक के खुलते ही मारुति वैन के दरवाजे भी खुल गए।

मारुति वैन में एक बैग भी रखा था जिसकी तलाशी उस कांसटेबल ने आगे जाकर ली होगी क्‍योंकि तभी लोग उस कांसटेबल से कहने लगे कि इसमें तो बैग रखा है। सभी यह कह रहे थे कि मारुति वैन को वैसे भी ले जाया जा सकता था तो पत्‍ती के माध्‍यम से लॉक क्‍यों खोला गया। पुलिस वाले के कहने पर जब सब के सामने लॉक खोला गया तो क्‍या इस तकनीक को दूसरों ने नहीं सीख लिया। क्‍या ये लड़के जो इतना कुछ जानते हैं दूसरों को यह तकनीक नहीं सिखाते होंगे। क्‍या ये लड़के राजा हरिशचंद्र के वंशज है जो खुद कभी कार चोरी में शामिल नहीं होंगे पैसे के लालच या किसी मजबूरीवश। इन सभी सवालों सहित अनेक सवालों के जवाब नहीं है हमारे सामने।

August 11, 2007

महिलाओं की संगत से बिगड़ी जेब की रंगत

यह तो सभी चाहते हैं कि उनके आफिस में सुंदर महिलाएं काम करें, लेकिन जिन आफिसों में ऐसा पहले से ही है, जरा वहां के बारे में पता कर लीजिए। दफ्तरों में महिला कर्मचारियों की बढ़ती संख्या का खामियाजा बेचारे पुरुष कर्मियों को भुगतना पड़ रहा है। ऐसा नहीं है कि इसके कारण उनकी नौकरी को कोई खतरा पैदा हो रहा है। दरअसल, इस वजह से उन्हें सज-संवर कर आफिस आना पड़ता है। जाहिर है महंगाई से लड़-झगड़ कर होने वाली बचत सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्च हो रहीहै।

पुरुष कर्मियों का खर्च बढ़ाने में कार्पोरेट जगत का सघन प्रचार अभियान भी अहम भूमिका निभा रहा है। इसके चलते वह अपनी साज-सज्जा के प्रति ज्यादा सजग हो गए हैं तथा कास्मेटिक्स, वेशभूषा और मोबाइल फोन के मद में बेतहाशा खर्च कर रहे हैं। इसका खुलासा देश के प्रमुख उद्योग चैंबर एसोचैम द्वारा कराए गए देशव्यापी सर्वेक्षण में हुआ है। इसके अनुसार 58 प्रतिशत युवा एवं मध्य आयु के लोग और उनकी 65 फीसदी संतानें इन वस्तुओं पर प्रत्येक माह 2500 रुपए से भी अधिक खर्च कर रही हैं। वर्ष 2000 में इन मदों में किया जाने वाला खर्च एक हजार रुपए प्रति माह ही था।

सर्वे में शामिल पांच हजार से अधिक उपभोक्ताओं में से 65 फीसदी ने कहा कि पिछले सात वर्षो के दौरान ब्रांडेड कास्मेटिक्स के मद में उनके खर्च 30 फीसदी बढ़े हैं। ऊपरी मध्य आयु (40 से 45 साल) के 57 फीसदी लोगों ने कहा कि पढ़ने और संजने-संवरने के मामले में वे पहले की अपेक्षा 22 फीसदी अधिक खर्च कर रहे हैं। कास्मेटिक्स पर खर्च के मामले में छात्र भी पीछे नहीं हैं। आखिर उनके कालेजों तो लड़कियां भी तो पढ़ती हैं। एसोचैम के मुताबिक 32 फीसदी छात्र इस मद में 700 से 1000 रुपए प्रति माह खर्च करते हैं। सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 61 फीसदी लोगों ने बताया कि वे मोबाइल फोन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कार्यस्थलों पर ही करते हैं।

एसोचैम के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत ने बताया कि रोचक बात यह है कि महिला कर्मियों की तुलना में पुरुष सहकर्मियों में कास्मेटिक्स के प्रति रुझान बढ़ा है। उन्होंने कहा कि पुरुष उपभोक्ता प्रति माह कास्मेटिक्स पर 300 से लेकर 500 रुपए खर्च करते हैं और ब्रांड वगैरह के बारे में खुद निर्णय लेते हैं। इनमें से 85 प्रतिशत गुणवत्ता को विशेष तवज्जो देते हैं। दूसरी ओर 75 प्रतिशत महिलाएं ब्रांड का चुनाव खुद करती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 75 फीसदी पुरुष उपभोक्ता बार-बार अपना मोबाइल हैंडसेट बदलते रहते हैं और इस मद में उनके खर्च महिला सहकर्मियों की तुलना में ज्यादा हैं। जागरण डॉट कॉम से साभार