April 7, 2007

जहर मत घोलना वंदे मातरम् पर


वंदे मातरम् तो मातृप्रेम का गीत है, लेकिन विश्‍व के अनेक देशों के राष्‍ट्रगीत तो ऐसे हैं जिनसे दूसरे देशों की जनता को काफी ठेस पहुंचती है। ये देश दूसरे देश के अपमान या मानहानि के बजाय स्‍वयं के देश की प्रजा के स्‍वाभिमान, अभिमान और गुमान की ही पहली चिंता करते हैं। लेकिन हमारी बात अलग है। भारत ने सदैव विश्‍वशांति को प्राथमिकता दी है।

उत्‍तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में एक सीडी और मुस्लिमों का अल्‍पसंख्‍यक दर्जा खत्‍म करने को लेकर खूब विवाद छिड़ा हुआ है। ऐसे में विनय कटियार ने कहा है कि उत्‍तर प्रदेश में यदि भाजपा सत्‍ता में आई तो सभी स्‍कूलों में वंदे मातरम् गाना अनिवार्य बनाया जाएगा। इस राष्‍ट्रगीत पर पहले भी बहुत विवाद हो चुका है। देश के पहले राष्‍ट्रपति डॉ राजेन्‍द्र प्रसाद भी चाहते थे कि संसद की कार्यवाही वंदे मातरम् के गायन से हो, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब वंदे मातरम् एक बार फिर चर्चा में है लेकिन कांग्रेसियों, भाजपाइयों, सपा और बसपा वालों सभी से अनुरोध हैं कि यह गीत किसी की जागीर नहीं है, यह देश की जागीर है और इस पर विवाद मत छेड़ना। जान लो....दूसरे देशों के राष्‍ट्रगीत जिनसे बेहतर है मेरा वंदे मातरम्....

छोटे छोटे देशों के राष्‍ट्रगीत भी अनेक बार क्रूर और हिंसक होते हैं। इन्‍हें आततायियों और शत्रु को फटकार लगाने के लिए लिखा गया है। छोटे से देश डेनमार्क का उदाहरण लें। डेनमार्क के राष्‍ट्रगीत में एक लाइन है जो राजा क्रिश्‍टीएन के वीरत्‍व को उकसाती है। उनकी तलवार इतनी तेज चलती थी, शत्रु के कलेजे और सिर को एक साथ काट फेंकती थी। मध्‍य अमरीकी देश ग्‍वाटेमाला के राष्‍ट्रगीत में एक लाइन है-किसी आततायी को तेरे चेहरे पर नहीं थूकने दूंगा ! बल्‍गारिया के राष्‍ट्रगीत में भी आहूति की बात कही गई है। बेशुमार योद्धाओं को बहादुरी से मारा है-जनता के पवित्र उद्देश्‍य के लिए। चीन के राष्‍ट्रगीत में खून से सनी एक लाइन है -हमारे मांस और खून का ढ़ेर लगा देंगे-फिर से एक नई महान चीन की दीवार बनाने के लिए....।

अमरीका में मेरीलैंड नामक एक राज्‍य है। इस राज्‍य का भी राज्‍यगीत या राष्‍ट्रगीत है, जो वीरत्‍व से भरा पड़ा है, इसमें शब्‍द हैं कि- बाल्टिमोर की सड़कों पर फैला हुआ है देशभक्‍तों का नुचा हुआ मांस- इसका बदला लेना है साथियों...! इन सभी की तुलना में सुजलां, सुफलां मलयज शीतलाम् अथवा मीठे जल, मीठे फल और ठंडी हवा की धरती जैसे विचारों का विरोध हो रहा है। यह कितना साम्‍प्रदायिक लग रहा है?

ब्रिटेन का राष्‍ट्रगीत ‘गॉड सेव द क्विन (या किंग)’ को 19वीं सदी की शुरूआत में स्‍वीकृति मिली। वर्ष 1745 में इसे पहली बार सार्वजनिक तौर पर गाया गया, लेकिन इसकी रचना किसने की, किसने संगीत दिया इस विषय में जरा अस्‍पष्‍टता है। लेकिन इससे पूर्व जिस गीत ने राष्‍ट्रगीत का दर्जा पाया, वह कैसे भाव व्‍यक्‍त करता है ? रुल ब्रिटानिया, रुल दि वेव्‍ज/ब्रिटंस नेवर शेल बी स्‍लेव्‍ज (देवी ब्रिटानिया राज करेगी, समुद्रों पर राज करेगी, ब्रिटिश कभी गुलाम नहीं बनेंगे) इस गीत में आगे है- तेरे नगर व्‍यापार से चमकेंगे/हरेक किनारे पर तेरी शोभा होगी....।

बेल्जियम का राष्‍ट्रगीत ‘ब्रेबेनकॉन’ था। जिसे एक फ्रेंच कामेडियन ने लिखा था। इस गीत में डच प्रजा के खिलाफ विष उगला गया था। इसके शब्‍दों में तीन बार संशोधन करना पड़ा। वर्ष 1984 में आस्‍ट्रेलिया ने ‘एडवांस आस्‍ट्रेलिया फॉर’ राष्‍ट्रगीत निश्चित किया। रुस का राष्‍ट्रगीत ‘जिन सोवियत स्‍कोगो सोयूजा’ (सोवियत संघ की प्रार्थना) 1944 में स्‍वीकार किया गया और 1814 में अमरीका ने फ्रांसीस स्‍कॉट नामक कवि के ‘स्‍टार स्‍पेंगल्‍ड बेनर’ राष्‍ट्रगीत के रुप में स्‍वीकार किया। इससे पूर्व रुस ने ‘इंटरनेशनल’ को राष्‍ट्रगीत माना था।

इजरायल का राष्‍ट्रगीत ‘हा-निकवा’ केवल इतना ही है। दिल के अंदर गहरे गहरे तक/ यहूदी की आत्‍मा को प्‍यास है/ पूर्व की दिशा/ एक आखं जायोन देख रही है/ अभी हमारी आशाएं बुझी नहीं हैं/ दो हजार वर्ष पुरानी हमारी आशा/ हमारी धरती पर आजाद प्रजा होने की आशा/ जायोन की धरती और येरुश्‍लम...। फ्रांस का राष्‍ट्रगीत ‘लॉ मार्सेस’ विश्‍व के सर्वाधिक प्रसद्धि राष्‍ट्रगीतों में एक है। वर्ष 1792 में फौज के इंजीनियर कैप्‍टन कलोड जोजफ रुज दि लिजले ने अप्रैल महीने की एक रात यह गीत लिखा और इसके बाद इतिहास में हजारों फ्रांसीसियों ने इस गीत के पीछे अपने को शहीद कर दिया। बहुचर्चित इस राष्‍ट्रगीत की दो लाइनें इस प्रकार है अपने ऊपर जुल्‍मगारों का रक्‍तरंजित खंजर लहरहा है। तुम्‍हें सुनाई देता है अपनी भूमि पर से कूच करके आते भयानक सैनिकों की गर्जनाएं..?...साथी नागरिकों ! उठाओं शस्‍त्र, बनाओं सेना/ मार्च ऑन, मार्च ऑन/ दुशमनों के कलुषित रक्‍त से अपनी धरती को गीली कर दो...। फ्रांस के इस राष्‍ट्रगीत की इन दो पक्तिंयों की चर्चा समय असयम फ्रांस और उसके पड़ौसी देशों में होती रहती है। अभी इन दो पक्तियों की बजाय जो नई दो पंक्तियां सुझाई गई है वे थीं स्‍वाधीनता, प्रियतम स्‍वाधीनता/ शत्रु के किले टूट गए हैं/फ्रेंच बना, अहा, क्‍या किस्‍मत है/ अपने ध्‍वज पर गर्व है.../ नागरिकों, साथियों/ हाथ मिलाकर हम मार्च करें/ गाओं, गाते रहो/ कि जिसने अपनी गीत/ सभी तोपों को शांत कर दें..लेकिन फ्रांस की जनता ने इस संशोधन को स्‍वीकार नहीं किया। मूल पंक्तियों मे जो खुन्‍नस थी, जो कुर्बानी भाव था वह इनमें नहीं था। आज भी पुरानी पंक्तियां ज्‍यों की त्‍यों हैं और फ्रांसीसी फौजी टुकडि़यां इन्‍हें गाते गाते कूच करती हैं।

शायद सर्वाधिक विवादास्‍पद राष्‍ट्रगीत जर्मनी का ‘डोईशलैंड युबर एलिस’ है। जर्मनी के कितने ही राज्‍य पूरे गीत को राष्‍ट्रगीत के रुप में मानते थे। हिटलर के जमाने में भी यही राष्‍ट्रगीत था। लेकिन 1952 से जर्मनी ने तय किया कि केवल तीसरा पैरा ही राष्‍ट्रगीत रहेगा। जर्मनी के राष्‍ट्रगीत का पहला पैरा इस प्रकार है जर्मनी, जर्मनी सभी से ऊपर/जगत में सबसे ऊपर/ रक्षा और प्रतिरक्षा की बात आए तब/ कंधे मिलाकर खड़े रहना साथियों/मियुज से मेमेल तक/ एडीज से बेल्‍ट तक/जर्मनी, जर्मनी सभी से ऊपर/जगत में सबसे ऊपर... यह गीत जबरदस्‍त चर्चा का विषय बने यह स्‍वाभाविक है, आज मियुज नदी फ्रांस और बेल्जियम में बहती है। बेल्‍ट डेनमार्क में है और एडीज इटली में है। जर्मनी के इस राष्‍ट्रगीत में पूरे जर्मनी की सीमाओं के विषय में बताया गया है। कितने ही लोगों के अनुसार यह ग्रेटर जर्मनी है और इसमें से उपनिवेशवाद की बू आती है जबकि जर्मनी की ऐसी कोई दूषित भावना नहीं है। जहां फ्रांस में पंक्तियां बदलने की चर्चा होती है, वहां जर्मनी में ऐसा कुछ नहीं है। केवल जर्मनी ने ही राष्‍ट्रगीत के रुप में अहिंसक तीसरे पैरे को राष्‍ट्रगीत राष्‍ट्रगीत में स्‍वीकार किया है। इटली में भी 1986 में एक आंदोलन हुआ था। वहां राष्‍ट्रगीत जरा कमजोर महसूस किया जा रहा था। जनमत का कहना था कि संगीतज्ञ बर्डी के बजाय तेजतर्रार देशभक्ति वाले का गीत राष्‍ट्रगीत होना चाहिए। राष्‍ट्रगीत चर्चा में आए इससे चिंता नहीं करनी चाहिए।

प्रत्‍येक देश के राष्‍ट्रगीत में स्‍वाभिमान, गर्व होता है, राष्‍ट्रध्‍वज और राष्‍ट्रगीत ही ऐसी प्रेरणा होती है जिसके लिए सारी की सारी पीढि़यां सर्वस्‍व न्‍यौछावर कर देती हैं। भारत में फांसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारियों के अंतिम शब्‍द होते थे ‘वंदे मातरम्...!...’

5 comments:

Anonymous said...

नहीं समझेंगे ये लोग, हमारी संस्कृति 'वसुधैव कुटुम्बकम्' और 'सर्वे भवन्त सुखिन:' की है, पर इन लोगों को कौन और कैसे समझाए?

Anonymous said...

आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ.
दुनियाभर के राष्ट्र गीतो की सुन्दर समिक्षा की है.
भारत का राष्ट्रगीत जन-गण-मन है, तुलना करनी है तो इससे करें.
आज़ादी के बाद जो लोग सत्ता में आये वे इतने कायर थे की वन्दे मातरम महज एक राष्ट्रीयगान बन कर रह गया.
जिसे देश से प्रेम है वह वन्दे मातरम गाएगा, क्या किसी के विरोध की वजह से इसे किताबो में बन्द कर दे?

रंजन (Ranjan) said...

जो गाना चाहे गाये..और जो ना गाना चाहे.......?????

आपका गुस्सा जायज हे, किन्तु

१. बेहतर कौन - वन्दे मातरम गाकर झुठ बोलने वाला, बेइमानी करने वाला या वन्दे मातरम न गाकर सच्चाइ के पथ पर चलने वाला इमानदार..

२. सिर्फ वन्दे मातरम गाना राष्ट्र भक्ति की गारंटी नही...

३. इनमे से कौन ठीक. अ)राष्ट्र भक्त जो वन्दे मातरम नहीं गाना चाहता ब)राष्ट्र भक्त जो वन्दे मातरम गाना चाहता हे/गाता हे स)राष्ट्र द्रोही जो वन्दे मातरम नहीं गाना चाहता द) राष्ट्र द्रोही जो वन्दे मातरम गाना चाहता हे/गाता हे..

मेरे ख्याल में राष्ट्र भक्ती/ प्रेम ज्यादा मह्तव्पूर्ण है...

चलते चलते said...

रंजन जी, मेरा यह कहना नहीं है कि कोई वंदे मातरम् गाए या नहीं..यह व्‍यक्तिग इच्‍छा पर निर्भर है। लेकिन इस गीत पर जो राजनीति होती है, उस पर मेरा कहना है कि जहर मत घोलना वंदे मातरम् पर। कोई अपनी मां को नमन करे या नहीं करे..यह तो उसका अधिकार है। कोई भी व्‍यक्ति घर घर जाकर यह तो नहीं कह सकता कि मां को नमन करना या उसका आदर करना। इस लेख में मैंने यह भी बताने का प्रयास किया है अन्‍य देशों के राष्‍ट्रगीतों में क्‍या कहा गया है, जबकि हमारे यहां शांति की बात और केवल शांति की बात होती है, जो अच्‍छा है।

मसिजीवी said...

जानकारीपूर्ण लेख।
राष्‍ट्र निर्दोष रचना नहीं है, उसके प्रतीक भी निर्दोष नहीं हो सकते।

कारण अकारण खोजें खोजने वाले हमें तो सिर्फ इस कारण वंदेमातरम पसन्‍द है कि जन गण मन की तुलना में ये ज्‍यादा लयपूर्ण है।