April 4, 2007

जनता जनार्दन की पीठ ठोकनी चाहि‍ए...

निठारी गांव की एक पांच वर्षीय बच्ची के साथ बलात्‍कार करने वाले अर्जुन को पीट पीटकर मार डालने पर वहां की आम जनता की पीठ ठोकनी चाहिए। यदि जनता ने उसे यह सजा नहीं दी होती तो क्‍या होता, अस्‍पताल की रिपोर्ट बनती, अर्जुन वकील करता और कुछ सजा पाता या बाइज्‍जती बरी हो जाता। लेकिन आम जनता ने बिल्‍कुल सही किया और जो लोग इसे गलत कह रहे हैं उनकी भी सार्वजनिक पिटाई होनी चाहिए। नागपुर में भी गुंडे अक्‍कू को जिस तरह अदालत परिसर में मारा गया, वह सही था। आम जनता यह कदम पूरी तरह दुखी होने के बाद ही उठाती है, पहले नहीं। कानून और प्रशासन जिस तरह लचर पचर हो गया है, उसमें जरुरी है कि आम जनता समूह में कानून अपने हाथ में ले लें। अब तो जनता को यह सोचना चाहि‍ए कि यदि उनके इलाके के पार्षद, विधायक, सांसद उनकी तकलीफों को दूर नहीं करते हैं तो उनकी भी घेराबंदी की जाए और उन्‍हें वापस बुलाने का अधिकार दिया जाए।

3 comments:

ghughutibasuti said...

आपके,उस बच्ची के,उसके प्रिय जनों,गाँव वालों की भावना समझ सकती हूँ। बदला लेने के लिये की हत्या भी समझ सकती हूँ।किन्तु जो आप प्रचार कर रहे हैं वह आग से खेलने जैसा है, किसी का भी हाथ जल सकता है। भीड़ की मानसिकता अलग होती है, जो काम वे अकेले सोच समझ कर नहीं करेंगे वे वे भीड़ में करेंगे। जब वे मिलकर किसी को मार सकते हैं तो मिलकर सोये हुये न्याय तंत्र व सरकार को भी जगा सकते हैं। वह करना बेहतर होगा।
ऐसी ही मानसिकता के तहत गाँवों में स्त्रियों को डायन कहकर मारा जाता है। आज जो उन्होंने किया वह सही हो सकता है किन्तु कल गलत नहीं करेंगे यह विश्वास दिला सकते हो?
घुघूती बासूती

चलते चलते said...

पुलिस और प्रशासन जो कार्य कर रहे हैं, उससे कोई अनजान नहीं है। लोग दुखी हो चुके हैं अंदर तक। जो कुछ ठीकठाक चल रहा है, उनमे कुछ जज बेहतर कार्य कर रहे हैं और सरकार व प्रशासन की खिंचाई कर जवाब मांग रहे हैं। अदालत जो कहती है, उसे न मानने के लिए विधानसभाएं और संसद कानून में बदलाव कर अपनी ही बात मनवाने के मूड में है। टकराव हो रहा है। क्‍या आप मानते हैं कि सभी के साथ न्‍याय हो रहा है। आप और हम तो अपनी मूल सुविधाओं को नहीं पा सकते। मैं गांव गांव में जाता हूं, देखता हूं लोग दुखी हैं, उनकी कोई नहीं सुनता। विदर्भ और आंध्र प्रदेश के जिन किसानों ने आत्‍महत्‍या की थीं, उन तक तो अभी भी मदद नहीं पहुंची है। क्‍या उनके परिवार के दूसरे सदस्‍य भी आत्‍महत्‍या कर लें, आखिर उनकी लाचारी का फायदा क्‍यों उठाया जा रहा है। आप बताएं वे कहां जाएं...कानून की ऐसी तैसी करें या अपनी ऐसी तैसी करवाने के लिए वे तैयार रहें। बलात्‍कार होता है, डायन बताकर मारा जाता है, प्रेम करने पर मारने की सजा दी जाती है, आखिर उन पर कुछ तो होना ही चाहिए। बलात्‍कार किसी के साथ हो, लेकिन उसके लिए फांसी और मौत से कम सजा नहीं होनी चाहिए। बलात्‍कार करने वालों की हत्‍या यदि जनता करती है, ठीक है। बलात्‍कार करने वाले को ससम्‍मान पुलिस स्‍टेशन ले जाया जाए और जमानत करवाकर अपराध से बाइज्‍जत बरी कर दिया जाए, यदि लोग यह चाहते हैं तो ऐसे समाज में न रहना बेहतर है। क्‍या होता है, ज्‍यादातर बलात्‍कारी तो छूट जाते हैं या पांच दस साल की सजा पाते हैं लेकिन एक लड़की जिंदगी भर भोगती है सजा।

Sagar Chand Nahar said...

कमल जी कल को ऐसा भी हो सकता है कि किसी निर्दोष की हत्या कर उस पर इस तरह का आरोप मढ़ दिया जाये।

मैं आपसे इस बात पर सहमत नहीं।

क्या फिर से हम प्रस्तर युग में जीना चाहते हैं ?