संत आसाराम बापू ट्रस्ट का एक मामला हाल में ‘इंडिया टीवी’ पर दिखाया गया जिसमें बताया कि कैसे-कैसे इस संत ने कई जगह करोड़ों रुपए की जमीन फोकट में हड़प ली है और खुद भू माफिया बन गए हैं। मुझे भी कई पत्रकार और गैर पत्रकार मित्रों के फोन आए कि यार इस कलम खिसाई से तो अच्छा है संत बन जाएं और मौज करें। मेरा कहना है कि संत क्यों बनें, क्यों नहीं एक धार्मिक चैनल ही मिलकर खोल लें और ढ़ेर सारा रुपया बनाएं। ‘सहारा समय’ हिंदी साप्ताहिक में 17 जनवरी 2004 को मेरा एक लेख इसी मसले पर छपा था जिसे जस का तस ब्लॉग पर दे रहा हूं।
लेख का शीर्षक था ‘चैनलों की चांदी...’ आप भी पढि़ए...पिछले तीन साल में भारत में धार्मिक चैनल के दर्शकों की संख्या में अच्छा खासा इजाफा हुआ है। इसे देखते हुए पांच और नए धार्मिक चैनलों के आने की तैयारी हो रही है। धार्मिक चैनलों पर अलग अलग संतों के प्रवचनों का खूब प्रसारण होता है जिनमें मुख्य रुप से यह बात होती है कि भगवान कौन है और पैसा मिट्टी है। प्रवचनों का सार यह होता है कि सब कुछ गुरु के चरणों में समर्पित कर दो।
लेख का शीर्षक था ‘चैनलों की चांदी...’ आप भी पढि़ए...पिछले तीन साल में भारत में धार्मिक चैनल के दर्शकों की संख्या में अच्छा खासा इजाफा हुआ है। इसे देखते हुए पांच और नए धार्मिक चैनलों के आने की तैयारी हो रही है। धार्मिक चैनलों पर अलग अलग संतों के प्रवचनों का खूब प्रसारण होता है जिनमें मुख्य रुप से यह बात होती है कि भगवान कौन है और पैसा मिट्टी है। प्रवचनों का सार यह होता है कि सब कुछ गुरु के चरणों में समर्पित कर दो।
संतों के सेवक अपने गुरु के ऑडियो-वीडियो टेप तैयार करते हैं और टीवी चैनलों से सौदा तय करते हैं। इसी तरह अलग अलग शहरों में प्रवचनों के आयोजक रहते हैं जो इन गुरुओं के प्रवचन धार्मिक टीवी चैनलों पर प्रसारित कराकर धन लेते हैं। ये प्रवचन पहले से रिकॉर्ड किए हुए भी हो सकते हैं और कई बार इनका सीधा प्रसारण भी कराया जाता है। इन प्रसारणों का लाभ यह होता है कि प्रवचन सुनने वाले भारी संख्या में आते हैं और पंडाल हमेशा भरे रहते हैं। आसाराम बापू अपने प्रवचनों का आयोजन खुद करते हैं। अब अन्य गुरु भी उनकी राह पर हैं। बड़े संतों के प्रवचन के कार्यक्रम तीन-तीन साल तक के लिए तय रहते हैं। आसाराम बापू के आश्रम की निगरानी रखने वाले अजय शाह बताते हैं कि सत्तर के दशक में आसाराम बापू को केवल गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में ही जाना जाता था लेकिन 1992 में उन्हें अपने प्रवचनों के प्रसारण के लिए सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर सुबह का समय मिला और उनका नाम घर-घर जाना जाने लगा।
नब्बे के दशक में सोनी और जी टीवी ने सुबह के समय प्रवचन का प्रसारण शुरू किया और इससे ही धर्म के धंधे में मौजूदा बदलाव आया। लेकिन इस सारे कारोबार को व्यवस्थित तौर पर तीन साल पहले आए ‘आस्था’ चैनल ने आगे बढ़ाया। देश का यह पहला चैनल है जो धार्मिक प्रवृति वाले लोगों के लिए था। इसके बाद ‘संस्कार’ चैनल आया और पिछले साल तीसरा ‘साधना’ चैनल आया। अब ‘जागरण’, ‘शक्ति’, ‘अहिंसा’, ‘संस्कृति’ और ‘सुदर्शन’ नाम के चैनल आने की तैयारी कर रहे हैं। इन चैनलों ने नए गुरुओं की कमाई की राह को आसान बनाया है। ‘साधना’ के राकेश गुप्ता कहते हैं कि ‘टीवी के आने से गुरुओं को अपनी इमेज खड़ी करने में बड़ी मदद मिली है। अब लोग उन्हें खूब जानने लगे हैं और प्रवचन आयोजक भी ज्यादा पैसे देने को तैयार हैं।‘
हालांकि कोई भी यह मानने को तैयार नहीं है कि वे धर्म का धंधा कर रहे हैं और माया कमा रहे हैं। ‘आस्था’ के मार्केटिंग प्रमुख कमल भक्तानी और ‘संस्कार’ के दिनेश काबरा धन की बात से इनकार करते हैं। राकेश गुप्ता कहते हैं कि उन्होंने टीवी चैनल इसलिए किए कि दूसरे दो चैनलों का व्यापारीकरण हो चुका था और वे एयर टाइम के लिए धन ले रहे थे। वे कहते हैं, कि ‘केवल हमारा चैनल ही नॉन प्राफिट संगठन है।‘
धार्मिक टीवी चैनलों पर प्राइम टाइम सुबह सात से नौ बजे तक का होता है और इस दौरान बीस मिनट के प्रवचन के लिए ‘आस्था’ और ‘संस्कार’ चैनल छह से दस हजार रुपए लेते हैं। नॉन प्राइम टाइम में यह दर लगभग तीन से साढ़े तीन हजार रुपए रहती है। सप्ताहांत में दर्शकों की संख्या बढ़ जाने से दरें भी बढ़ जाती है और 20 मिनट के लिए 12 हजार से 15 हजार रुपए लिए जाते हैं। ‘साधना’ की दरें कम हैं।
ईसाई मत का प्रसार करने करने वाले चैनल ‘गॉड टीवी’ और ‘जीवन’ हिंदू धार्मिक चैनलों की तरह ही काम कर रहे हैं। ‘गॉड टीवी’ को ब्रिटेन स्थित एंगल फाउंडेशन चलाता है। इस चैनल की आय में 40 फीसदी हिस्सेदारी विभिन्न चर्चों के कार्यक्रम प्रसारण की है जबकि शेष दान से आती है। दूसरे चैनल ‘जीवन’ को भारत के कैथोलिक चर्च ने प्रमोट किया है जिसका दावा है कि वह नैतिक मूल्यों के महत्व को समझाते हुए पारिवारिक कार्यक्रम प्रसारित करता है।
धार्मिक चैनलों के लिए प्रवचन और भजनों का प्रसारण मुनाफे का कारोबार है। ‘आस्था’ की शुरूआत तीन करोड़ रुपए के मामूली निवेश से हुई थी। प्रसारण उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि ऐसे चैनल लांच करना काफी आसान है और दस करोड़ रुपए के बजट में इसकी शुरूआत की जा सकती है। इन चैनलों को चलाने की लागत भी काफी कम बैठती है। ‘आस्था’ हर महीने सैटेलाइट के किराए के रुप में छह से सात लाख रुपए अदा करता है। सिंगापुर में ट्रांसमिशन स्टेशन चलाने के लिए पांच से छह लाख रुपए देने होते हैं। कर्मचारियों, कार्यालय और स्टूडियो पर 15/20 लाख रुपए की लागत बैठती है। इस तरह एक महीने में चैनल का खर्च 30/35 लाख रुपए आता है। इस खर्च के मुकाबले यह चैनल केवल गुरुओं के सहारे हर महीने 50 लाख रुपए कमा लेता है। चैनल की आय में गुरुओं का योगदान 60/70 फीसदी रहता है। विज्ञापन से केवल 20 फीसदी आय होती है। शेष आमदनी भजन एलबम आदि को प्रमोट करने, धार्मिक गतिविधियों को कवर करने और धार्मिक ट्रस्टों के प्रोफाइलिंग कारोबार से आती है।
धार्मिक टीवी चैनलों में आम नियम यह है कि छोटे गुरु को बड़े गुरु से ज्यादा पैसा अदा करना होता है। यह नियम लिखित नहीं है। इसका गणित इस पर निर्भर है कि छोटे गुरु के प्रवचनों में कितना दम है। अगर वह चैनल के प्रबंधन को जानता हो तो उसे कम पैसा देना पड़ता है। ‘आस्था’ चैनल के बीस मिनट के स्लॉट में गुरु को तीन मिनट अतिरिक्त मिलते हैं। गुरु चाहे तो इस समय को बेचकर विज्ञापनकर्ता से पैसा ले सकता है या फिर अपने उत्पादों को प्रमोट करने के लिए इसका उपयोग कर सकता है। मार्केटिंग के जानकार बताते हैं कि गुरुओं ने अपने प्रवचन के प्रायोजक ढूंढकर आय का नया स्त्रोत विकसित कर लिया है। ज्यादातर गुरु तीनों धार्मिक चैनलों पर आते हैं। लेकिन वे इस बात का खास ख्याल रखते हैं कि दो चैनलों पर एक साथ उनका कोई प्रवचन या कार्यक्रम प्रसारित न हो। लाइव प्रसारण के समय उनके सेवक प्रवचनों की रिकॉर्डिंग करते हैं और 20/20 मिनट के कैसेट खुद संपादित कर टीवी चैनलों को सौंपते हैं।
3 comments:
आपने अच्छा बताया.
जल्दी ही रतलामी गुरू का चैनल चालू होने वाला है. इंतजार कीजिए...
दो चीजे खरा सोना है, जब चाहो कैश कर लो. धर्म और सेक्स. सदा बिका है. सदा बिकेगा.
कमल जी;
क्या कोई चैनल कौड़ियों में शुरू नहीं हो सकता?
सिर्फ ट्रांसमिशन के खर्च के बल पर.
सोचिये और बताईये.
Post a Comment