May 11, 2007

सुविधाभोगी संपादकों ने किया है पत्रकारिता का बेड़ा गर्क

शक्तिमान राम को कुशलता के साथ केंवट ने जिस तरह नदी के पार उतारा, वहीं भूमिका मीडिया में एक संपादक की होती है। यहां शक्तिमान समाज है और उसके लिए केवट की भूमिका संपादक को निभानी होती है। लेकिन अब बदले माहौल में संपादकों ने केंवट की भूमिका छोड़ दी है और समाज की बजाय मीडिया मालिकों के हितों के लिए ज्यादा काम कर रहे हैं। पढि़ए मेरा यह पूरा लेख मीडिया विमर्श पत्रिका के इस लिंक पर http://www.mediavimarsh.com/march-may07/kamalsharma.march-may07.htm

2 comments:

Ramashankar said...

आपने बिल्कुल सही लिखा है. संपादक आज संपादक कम ब्रांड मैनेजर नहीं सिर्फ मैनेजर रह गया है. हमने जब पत्रकारिता में घुसने की सोची तो संपादक के बारे में काफी पैमाने अपने जेहन में फिट किये. जब एक अखबार में आए तो यहां जो कुछ देखा वह हमारे पैमाने से कोसो दूर था. जैसा कि आपने बताया चुनाव में खबरे पैसे से छपती हैं तो उसका एक हिस्सा मैं भी था. दरअसल मैं सेन्ट्रल डेस्क का दायित्व भी देखता था. मुझे पहले बता दिया जाता था कि इस प्रत्याशी से इतना पैसा है उस आधार पर मुझे डमी बनानी पड़ती थी. तो कई बार यह भी होता था कि किसी दूसरे प्रत्याशी से पैसे निकालने के लिये किसी अन्य प्रत्याशी की मुफ्त में गलत खबर भी देना पड़ता था. कुछ ऐसा ही मामला विज्ञापनों का है. अभी कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश में स्मार्ट के सिम बंद कर दिये गए. बगैर जानकारी के अचानक इस हरकत पर रिलायंस ने जो कुछ कहा उस पर प्रदेश में कई शहरों में हंगामा हुआ . हमारे शहर में भी हुआ और जमकर हुआ लेकिन एक लाइन भी इसपर न लिख सके कारण बताया गया कि विज्ञापन पार्टी है. इस तरह विज्ञापन पार्टी के नाम पर हर दिन हमारा या हमारे किसी साथी का हाथ रोक दिया जाता है ताकि लेखनी न चले. अब देखिये एक स्कूल को सीबीएसई की मान्यता नहीं मिली और ११वीं व १२वीं के छात्रों ने इसपर काफी हंगामा किया कलेक्टर से मुलाकात की लेकिन हम फिर नहीं लिख सके क्योंकि वह स्कूल विज्ञापन पार्टी थी. यह तो संपादकीय की बात है तो संपादक का काम अब खबर के एंगल नहीं न्यूज प्रिंट कैसे आएगा, स्याही नहीं आई तो क्या व्यवस्था करें न्यूज प्रिंट नहीं आया तो दूसरे अखबार से अपने संबंधों के माध्यम से क्या व्यवस्था की जाये आदि रह गए हैं. रही बात आदर्श की तो एसएन विनोद जी हमारे ग्रुप एडीटर रह चुके हैं. उनसे मिल तो नहीं सके लेकिन उन्होने अखबार में ले आउट से लेकर खबरों के प्रस्तुति करण का जो दौर शुरू किया था उसी से मुझे आभास हुआ था कि 'इनमें कुछ तो है'. फिर उसी अखबार में एक खबर छपी और गैरतमंदी ने उन्हें हमसे अलग कर दिया . फिर भी वे मेरे लिये बगैर मिले ही एक आदर्श हैं.

Rajesh Roshan said...

ispar jayada likhna mere sehat ke liye ho sakta hai nuksan dayak ho lekin itna to kah sakta hu ki heading Mast hai.