May 20, 2007

विश्‍व युद्ध हिंदी ब्‍लॉगरों का

टेलीविजन चैनलों पर आजकल दो कार्यक्रम आ रहे हैं संगीत का प्रथम विश्‍वयद्ध और दूसरा है वॉयस ऑफ इंडिया...दोनों कार्यक्रमों में जमकर संगीत के नए खिलाडि़यों की परीक्षा ली जा रही है और उन्‍हें फिल्‍मो में गाने का मौका दिया जाएगा यदि अंतिम परीक्षा पास कर जाते हैं तो। हम भी चाहते हैं कि कुछ ऐसी ही प्रतियोगिता हिंदी ब्‍लॉगरों के बीच होनी चाहिए जो अलग अलग विषयों पर बेहतर लिखते हों। इनका चयन हिंदी के उम्‍दा लेखकों द्धारा होना चाहिए। सभी ब्‍लॉगर मित्र इस बहस को आगे बढ़ाए कि कैसे यह कार्य हो। चुने गए ब्‍लॉगरों को एक ऐसी वेबसाइट पर साल भर लिखने का मौका मिले, जो हर साल चुने गए बेहतर ब्‍लॉगरों के लिए ही बनी हो। हालांकि यह काम नारद पर बढि़या तरीके से हो सकता है जिसमें बेहतर ब्‍लॉगरों के लेखन के लिए कोई अलग से जगह तय कर दी जाए कि वहां केवल उन्‍हीं की पोस्‍ट होगी। इस कार्यक्रम की कसरत के लिए प्रायोजक से लेकर व्‍यक्तिगत धन योगदान देने वालों की खोज की जा सकती है और यह कठिन कार्य नहीं है। व्‍यक्तिगत योगदान मेरा भी होगा...यह तय है। भाई संजय बेंगानी जी, शशि जी, जीतू जी, मिर्ची सेठ जी, समीर जी उड़न तश्‍तरी, रवि रतलामी जी, फुरसतिया जी, सृजनशिल्‍पी जी, अमिताभ जी, रवीश जी, धुरविरोधी जी, भाटिया जी, ज्ञानदत्‍त पांडेय जी सहित सभी दिग्‍गज जिनके नाम मैं नहीं जानता हूं या इस सूची में छूट गए हैं, वे भी अपने को इस सूची में शामिल कर लें, नाराज न हो.....आप इस बारे में विचार करें और शुरु करे प्रथम विश्‍व युद्ध हिंदी ब्‍लॉगरों का। इस विश्‍व युद्ध में नारद की पूरी टीम के अलावा गुगल, याहू और एमएसएन जैसे सर्च इंजनों में बैठे हिंदी प्रेमियों को भी आमंत्रित किया जाए और जमाया जाए रंग।

12 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छी परियोजना लग रही है. हमारा क्या योगदान हो सकता है, सूचित कर देवें. हमेशा हाजिर हैं जनाब, आपके आदेश पर. :)

संजय बेंगाणी said...

समीरलालजी के सुर में सुर मिलाता हूँ. :)

Jitendra Chaudhary said...

आइडिया अच्छा दिख रहा है, लेकिन थोड़ा और परिष्कृत रुप और विस्तार पूर्वक समझाएं।

अब समय आ गया है कि हम हिन्दी चिट्ठाकारों के लेखन को और निखारने के लिए कुछ कार्य करें। शुद्द वर्तनी , प्रभावशाली शैली, विषय की भरपूर समझ और आंकड़ों का ज्ञान भी चिट्ठाकारी के लिए अब जरुरी हो गया है। काफी पत्रकारों और अनुभवी लेखकों के ज्ञान को प्रयोग करने का समय आ गया है।

Srijan Shilpi said...

हिन्दी चिट्ठाकारी का विश्व युद्ध तो शुरु हो चुका है और ऐतिहासिक महत्व के इस घटनाक्रम के दौरान मिलने वाले सार्थक वैचारिक निष्कर्षों को प्रभावी रूप से प्रस्तुत करने के लिए एक मंच का निर्माण भी कर लिया गया है और कुछ ही दिनों में उसकी घोषणा सार्वजनिक रूप से कर दी जाएगी।

लेकिन कमल जी, मेरे ख्याल से इस विश्व युद्ध को टीवी चैनलों द्वारा आयोजित किसी प्रायोजित एवं कृत्रिम किस्म के कार्यक्रम की तरह पूर्व-नियोजित रूप से संचालित करना ठीक नहीं होगा। इसे वास्तविक और स्वाभाविक ढंग से घटित होने दीजिए, तभी यह ऐतिहासिक महत्व का सिद्ध होगा। इसमें होने वाले वैचारिक संघर्ष चाहें कितने ही तीक्ष्ण और घातक हों, मगर इसे खेल या मनोरंजन बनाना उचित नहीं।

20 अप्रैल, 2007 को ई-स्वामी की एक पोस्ट पर मैंने अपनी टिप्पणी में कहा था:

आने वाले समय में इंटरनेट शैतानी प्रवृत्तियों और दैवी प्रवृत्तियों के बीच महासंग्राम का कुरुक्षेत्र बनेगा और चिट्ठा जगत इसके केन्द्र में रहेगा। यह अच्छा है कि यह युद्ध वास्तविक जगत में नहीं होगा और इसमें किसी की जान नहीं जाएगी, रक्तपात नहीं होगा। लेकिन इंसानों का मन जो दैवी और शैतानी ताकतों की प्रयोगशाला है और जो उसे युद्ध एवं शांति के लिए प्रेरित करता है, वह इंटरनेट पर सर्वाधिक सक्रिय होने जा रहा है।

Sanjeet Tripathi said...

उत्तम विचार शर्मा जी!

vishesh said...

उत्तम आइडिया

रवि रतलामी said...

विचार अच्छा है. आप पाठकों के साथ साथ चिट्ठाकारों को भी मालदार बनाने पर तुले हैं. ईश्वर आपको सफल करें :)

शैलेश भारतवासी said...

सृजनशिल्पी जी का कहना ठीक है। ब्लॉगरों का महायुद्ध भी ब्लॉगिंग की तरह नैसर्गिक तरीके से होना चाहिए। वैसे इस तरह का एक आयोजन १० दिनों के भीतर सीएसएस मीडिया लैब करने वाला है।

Gyan Dutt Pandey said...

वानप्रस्थाश्रम की अवस्था प्रारम्भ होगयी है हमारी. अब क्या लड़ेंगे. विश्वयुद्ध का कोई रेफ्री होता है? वही बनवा दीजिये.

dhurvirodhi said...
This comment has been removed by the author.
debashish said...

कमल, विचार बेहद अच्छा है। मैं आपका ध्यान हिन्दी चिट्ठाजगत में पहले काफी सफलतापूर्वक चले एक आयोजन अनुगूँज से भी अवगत कराना चाहुंगा जिसमें कोई चिट्ठाकार आयोजन की मेजबानी करता है, विषय निर्धारित करता है और फिर सहभागी चिट्ठाकार उस विषय पर अपनी राय देते हुये अपने अपने ब्लॉग पर एक प्रविष्टि लिखते हैं। आयोजन के अंत में मेजबान सभी सहभागी प्रविष्टियों का अवलिकन करते हुये एक चिट्ठा अक्षरग्राम समूह ब्लॉग पर लिखता है। ये आयोजन हर पखवाड़े या सप्ताह किया जा सकता है जिससे न केवल सामुदायिक भागीदारी बढ़ेगी वरन किसी भी मुद्दे पर चिट्ठाजगत की समग्र राय का भी पता चल सकेगा। बहस कराने का ये एक बेहतरीन तरीका हो सकता है।

अनुगूँज में रुचि किसी संयोजक की अनुपस्थिति और संभवतः किसी पारितोषिक के अभाव में क्रमशः कम होती गई आप यदि चाहें तो इस मंच में पुनः प्राण फूंक सकते हैं। हर आयोजन के अंत में वोटिंग द्वारा या मेजबान द्वारा ही सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि को पुरस्कृत किया जा सकता है। अनुगूँज की जानकारी के लिये सर्वज्ञ का यह पृष्ठ देखें। अधिक जानकारी के लिये आप मुझसे भी संपर्क कर सकते हैं।

जयप्रकाश मानस said...

कमल जी, कल मुझे टैक्सास के एक प्रवासी मित्र से पता चला कि हमारे लेखन पर वे क्या विचार रखते हैं । खास कर उन जैसे हिंदी के जानकार ।

मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि आप यहाँ सिर खपा कर कुछ कर सकते हैं । और आपके जैसे मिशन वाले लोगों को यहाँ जल्दी निराश होगी । बडे विचित्र लोग आ रहे हैं । हिंदी के लिक्खाड़ । मनमौजी । हितनिष्ट । गुटबाज । खैर आप का प्रस्ताव बूरा नहीं है । कुछ अच्छे स्वपनदर्शी भी हैं यहाँ । पर इनकी संख्या परिशुद्धता के कोण से देखें तो दर्जन भर भी नहीं है ।

उस पत्रकारिता का क्या होगा जिसकी जिम्मेदारी आप पर है । और जो हिंदी के गंभीर लोग यानी संजय जैसे लोग अपेक्षा करते हैं । मन की बात कहना था सो कह गया ।