मुंबई की लोकल ट्रेन में एक दिन मैं हमेशा की तरह जा रहा था कि दो लोगों में जगह को लेकर लड़ाई छिड़ गई। इस लड़ाई ने उन दोनों सज्जनों या कह लें दुर्जनों ने आदर के साथ भारतीय लहजे में एक दूजे की मां और बहिन तक को याद कर लिया। लड़ाई के हो हल्ले से तंग कुछ लोगों ने उन्हें चुप रहने को कहा। इसी बीच मेरे पास खड़े एक सज्जन जो उस समय भगवान गणेश के भजन गा रहे थे, ने कहा कि क्यों लड़ते हो पढ़े लिखे होकर...अरे देखो देश तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहा है, शेयर बाजार खूब बढ़ रहा है....भारतीय कंपनियां विदेशों में एक के बाद एक कंपनियां खरीदती जा रही है। कुछ सोचो अपने विकास के बारे में...मूर्खों की तरह मत लड़ो। देखो..फलां फलां कंपनियों के शेयरों के दाम इतने दिन में दुगुने हो गए। खैर! अब मैं भी पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूं कि हिंदी के ब्लॉग लेखक हिंदू, मुस्लिम और ईसाई की लड़ाइयां लड़ रहे हैं। कोई कह रहा है कि फलां ब्लॉग वाला मुस्लिमों के लिए लिख रहा है और हिंदू के खिलाफ जहर उगल रहा है। कोई ब्लॉग कह रहा है कि हिंदू अच्छे हैं और मुस्लिम लड़ाकू। पता नहीं क्या क्या लिखा जा रहा है जिसका मैं यहां जिक्र नहीं करना चाहता। सभी हिंदी ब्लॉग लेखक और पाठक सारी बातें जानते हैं। यह अच्छा नहीं हैं कि हम एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाएं और लड़े। लड़ना है तो देश के आर्थिक विकास के लिए लड़ो....समाज की बेहतरी के लिए लड़ो...बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा के लिए लड़ो। हर जगह सड़क, पानी और बिजली हो, इसके लिए दंगा मचाओ। हमारा देश जब आर्थिक प्रगति की ओर तेजी से बढ़ रहा है तब हमें जाति, धर्म और संप्रदाय के विवाद खड़े करना शोभा नहीं देता। साफ शब्दों में कहूं तो बंद करो यह बकवास और बात करो भारत को आर्थिक और राजनीतिक महासत्ता बनाने की। देश का हर राज्य, हर शहर, हर कस्बा और हर गांव कैसे आर्थिक प्रगति में भागीदार बने, इस पर कार्य करो। थाईलैंड के निर्वासित जीवन जी रहे प्रधानमंत्री सिनेवात्रा ने एक बेहतर कार्य किया था वहां एक गांव और एक उत्पाद की योजना लागू की जिससे लोगों की माली हालत में सुधार आया। क्यों नहीं हम भी एक गांव एक उत्पाद जैसी योजनाओं को अपनाकर भारतीय अर्थव्यवस्था को गति दें। यह मैं मानता हूं कि आपको अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखने का अधिकार है लेकिन एक बात बता दूं कि राष्ट्र और समाज के विकास के लिए, उसके हित में जो होता है वही लंबे समय चलता है, बकवासबाजी नहीं। जो इससे सहमत नहीं हैं वे यह जान लें कि लोग आज आपके साथ हो सकते हैं लेकिन दीर्घकाल में आपको कोई पढ़ना नहीं चाहेगा। हे मेरे ब्लॉग मित्रों सारे वाद विवादों, झगड़ों को दरकिनार कर राष्ट्र और समाज के लिए कुछ करें। जिस देश, राष्ट्र में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जाएं...बचपन में स्कूल में गाई जाने वाली प्रार्थना।
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5 comments:
सहमत!
कमल जी, आप सही कहते हैं ।मै आप से सहमत हूँ। इस झगड़े वाली सोच को पैदा करने वाले वही लोग हैं जिन्हे अपने देश से कोई सरोकार नही है।लेकिन उन के पास गंदगी फैलानें वाले सं्गठन मौजूद है।
सहमत हूँ, साथियों को अपनी ऊर्जा रचनात्मक कामों में लगानी चाहिए।
आमीन
bilkul theek kaha aapne.
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