समूची दुनिया का दारोगा या गुंडा...क्या कहूं...तय नहीं कर पा रहा हूं, ने अचानक मीडिया को एक तगड़ी रिपोर्ट दे दी कि भारत में कमोडिटी और रियॉलिटी बाजारों में जो पैसा लगा है, उसमें जैश-ए-मोहम्मद की बड़ी भूमिका है। यानी भारतीय बाजार में जैश ऐश कर रहा है और हमें बताने का काम अमरीका कर रहा है। अमरीका को पता चला, उसने जांच की और रिपोर्ट दे दी...और भारत की गुप्तचर एजेंसियां इस दौरान पूरी तरह सोती रही कि यह काम अमरीका कर ही रहा है तो हमें क्या जरुरत है काम करने की, हम तो रिपोर्ट आने पर जम्हाई लेकर उठने का प्रयास करेंगे वह भी तब जब सरकार यह मान लेगी कि जैश यहां ऐश कर रहा है या नहीं....सरकार बोलती रही कि सीधा विदेशी निवेश दिन दुगुना और रात चौगुना आ रहा है। सकल विकास दर यानी जीडीपी दस फीसदी पहुंच जाए तो अचरज मत करना मेरी प्रजा। आर्थिक विकास का ढोल हम पीटते रहे और निवेश के खिलाड़ी निकले जैश-ए-मोहम्मद वाले।
अमरीका हमारा इतना प्यारा दोस्त हो गया कि उसने अपने काम धाम छोड़कर हमारे लिए चाकरी करनी शुरू कर दी। हालांकि, अपने यहां तो पहले ही कुछ संत कह गए है कि अजगर करे न चाकरी... अब भाई बुश सा को अपने देश में तो कोई काम ही नहीं मिल पा रहा जिससे वे भारत की ही चिंता करने लगे हैं जाते जाते। हालांकि, बुश सा यह अच्छी तरह जानते हैं कि अमरीका में कहां कहां से आकर पैसा लगा है, बहुत पारदर्शी है वहां...कोई आंख मिचौली का खेल नहीं है वहां निवेश पर। अमरीका ने खुद किन किन देशों में किस किस के माध्यम से पैसा लगाया है, दूध के धुले की तरह सारी दुनिया के सामने हिसाब रख दिया है। हमाम में भी कपड़े पहनकर रहता है ताकि कोई उसे हमाम में नंगा नहीं कह सके। अमरीका हमारा इतना भला दोस्त है, बेचारे ने सारे कामधाम छोड़कर पहले यह काम किया कि भारत को बता दें कि भाई आपके यहां जो पैसा लग रहा है वह आतंककारियों का है। बेचारे ने ईरान की गर्दन तोड़ने तक का काम अधबीच में छोड़ दिया और पहले भारत की तरफ लपका। अपने पुराने लंगोटिया यार पाकिस्तान तक को नहीं बताया कि देखो मियां इन दिनों हम तुम्हारा कोई काम नहीं कर पाएंगे, पहले तुम्हारे दुश्मन भारत का भला करना है हमें तो रिपोर्ट देकर। भले जैश-ए-मोहम्मद के लोग तुम्हारे यहां रहकर काम कर रहे हों लेकिन भारत को बताना हमारे जैसे दादाओं के लिए जरुरी है। नहीं तो यार तुम लोग भिड़ोगे कैसे और हमारा फायदा होगा कैसे।
एक अमरीकी मित्र हमें भी मिल गए, पूछ लिया यार तुम लोग अपना काम धाम छोड़कर वाकई जग भलाई के काम कर रहे हो, तुम्हें कौनसा नागरिक सम्मान दूं समझ नहीं आ रहा। उस अमरीकन ने पहले इधर उधर ताका झांका और हमारे कान के पास फुसफूसाया....यार हमारी हालत काफी खराब है। डॉलर रोज कमजोर होता जा रहा है, क्रूड के दाम आसमान पहुंच रहे हैं। सोने में निवेश बढ़ रहा है। हमारी तो आर्थिक हालत बिगड़ रही है, मंदी से उबरे तो अपने लिए कुछ करें नहीं तो तुम्हारे लिए ही करेंगे। हमने कहा...तुम्हारा मतलब है मैं तो विधवा होउंगी लेकिन तुझे भी सुहागिन नहीं रहने दूंगी। वह बोला...नो...नो...हमने लताड़ा यानी हम दस फीसदी और चीन 11 फीसदी से ज्यादा की विकास दर हासिल कर रहा है तो तुम्हें सुहा नहीं रहा। तुम तो मंदी में बैठ ही गए, बस हर साल एक के बाद एक देश पर हमला कर वहां से अपने लिए पैसा जुटा लेते हो दादागिरी करने का। जैश-ए-मोहम्मद की रिपोर्ट देकर भारत के कमोडिटी, रियॉलिटी और इक्विटी बाजारों में मंदी के झटके देना चाहते हो ताकि आम आदमी का पैसा तुम्हारे देश के एफआईआई जो हमारे यहां काम कर रहे हैं, उनके बैंक खातों में चला जाए। लानत है ऐसी चिंता पर यार।
आज हमें अनेक लोगों के फोन आए कि बाजारों का क्या होगा यह तो सब उल्टा होने जा रहा है। हमारा कहना है कि भारतीय गुप्तचर एजेंसियां भी काफी सक्षम है और घबराने की कोई जरुरत नहीं है। अमरीका कब से यह पता लगाने का काम कर रहा है कि भारत में पैसा जैश-ए-मोहम्मद के लोग लगा रहे हैं, क्यों नहीं उसने भारत की एजेंसियों को साथ लिया और उन लोगों या कंपनियों के नाम क्यों नहीं घोषित किए जो भारतीय बाजार में पैसा लगा रहे हैं ऐसे आंतककारी संगठन का। क्या अमरीका यह जांच कार्य भारत में कर रहा था और यदि हां तो क्या उन्होंने ऐसी जांच से पहले भारत सरकार को जानकारी दी थी। खुद अमरीकन यदि भारत आए थे और ऐसी रिपोर्ट की पुष्टि कर रहे थे तो क्या उन्होंने अपने मकसद भारत सरकार को बताए थे। यदि चुपचाप पुष्टि कर रहे थे तो वे चोरों की तरह क्यों घुसे। अमरीका ने रिपोर्ट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकाने और निवेश करने वालों के नाम, पते क्यों नहीं जारी किए ताकि वहां हमला कर उन्हें नष्ट किया जा सके। जिन लोगों के पास भारत में इस संगठन का पैसा पहुंचा है, उन्हें लतियाया जा सके।
केवल कागजी रिपोर्ट पेश करना आसान है मिस्टर बुश। आपके दोस्त डिक चीनी ने तेल के धंधे में क्या क्या किया सारी दुनिया जानती है। क्या उन्होंने और उनकी कपंनी ने सारा काम और निवेश ईमानदारी से किया। अमरीकनों ने जहां जहां निवेश किए हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए। क्या सारा निवेश पूरी तरह ईमानदारी के साथ और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से किसी भी देश में गलत कार्यों के लिए निवेश नहीं किया है। मैं आतंककारियों और सत्ता में आकर लाइसेंसधारी आतंकी बनकर निवेश दोनों के खिलाफ हूं। हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भी कहा था कि शेयर बाजार में आतंककारी संगठनों का पैसा लगा है, लेकिन उन्होंने नाम बताएं इन लोगों की कंपनियों के और निवेशकों के। भारतीय बाजारों में भी यह चर्चा अकसर होती है कि नेताओं और प्रशासकों का दो नंबर का पैसा बाजारों में लगा हुआ है लेकिन कानून सबूत मांगता है और वह किसी के पास नहीं है, जब तक कि सब कुछ पकड़ा न जाए कुछ नहीं हो सकता। निवेशक तो यहां तक कहते हैं कि शेयर बाजार, कमोडिटी बाजारों में आने वाले तगड़े झटके खुद सरकार में बैठे मंत्रियों की मिलीभगत से आते हैं। इनसाइडर बिजनैस किया जाता है, लेकिन सबूत न होने से कुछ नहीं हो पाता। यहां हम एक बात कमोडिटी बाजार की करते हैं सरकार मानती है कि दलहन के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं और इन्हें सस्ता करने के लिए वायदा रोकना जरुरी है तो लोग कहने लगे हैं कि जब तुअर और उड़द के वायदा कारोबार पर रोक लग गई तो चने पर रोक क्यों नहीं लगी। चने पर रोक न लगने पर कई कारोबारियों का कहना था कि इसमें दक्षिण भारत के बड़े बड़े सटोरिएं शामिल हैं और इस पर कभी रोक नहीं लग सकती जब तक उनकी पोजीशन है। लोग कह रहे हैं कि मानसून में सीमेंट पर एक्साइज ड्यूटी कम हो जाएगी क्योंकि दक्षिण भारत की एक बड़ी सीमेंट कंपनी में कुछ सत्ताधारियों का पैसा लगा है और कंपनी को एक्साइज बढ़ने से बड़ा मुनाफा नहीं हो रहा है। ये बातें कहां से पैदा होती है।
जैश के साथ सत्ता में कर रहे ऐश वालों के पैसे भी आतंकियों के पैसे से कम नहीं है। खैर अच्छी बात तब होगी, जब हमारी सरकार ईमानदारी के साथ आतंककारियों और भ्रष्ट नेताओं व नौकरशाहों के पैसे को ढूंढकर इन्हें सजा दे और बाजारों को अधिक पारदर्शी बनाएं। भारतीय संविधान की शपथ लेकर संसद में बैठने वाले बाबूभाई कटारा और सवाल पूछने के लिए धन लेने वाले सांसद जब देश को चला रहे हो तो कुछ भी हो सकता है। सरकार में बैठे लोग ऐसे भ्रष्ट सांसदों के चरित्र और कामकाज का पता नहीं लगा पाई तो मुझे मुशिकल लगता है कि वह जैश के पैसे को खोज पाएगी।
अमरीका हमारा इतना प्यारा दोस्त हो गया कि उसने अपने काम धाम छोड़कर हमारे लिए चाकरी करनी शुरू कर दी। हालांकि, अपने यहां तो पहले ही कुछ संत कह गए है कि अजगर करे न चाकरी... अब भाई बुश सा को अपने देश में तो कोई काम ही नहीं मिल पा रहा जिससे वे भारत की ही चिंता करने लगे हैं जाते जाते। हालांकि, बुश सा यह अच्छी तरह जानते हैं कि अमरीका में कहां कहां से आकर पैसा लगा है, बहुत पारदर्शी है वहां...कोई आंख मिचौली का खेल नहीं है वहां निवेश पर। अमरीका ने खुद किन किन देशों में किस किस के माध्यम से पैसा लगाया है, दूध के धुले की तरह सारी दुनिया के सामने हिसाब रख दिया है। हमाम में भी कपड़े पहनकर रहता है ताकि कोई उसे हमाम में नंगा नहीं कह सके। अमरीका हमारा इतना भला दोस्त है, बेचारे ने सारे कामधाम छोड़कर पहले यह काम किया कि भारत को बता दें कि भाई आपके यहां जो पैसा लग रहा है वह आतंककारियों का है। बेचारे ने ईरान की गर्दन तोड़ने तक का काम अधबीच में छोड़ दिया और पहले भारत की तरफ लपका। अपने पुराने लंगोटिया यार पाकिस्तान तक को नहीं बताया कि देखो मियां इन दिनों हम तुम्हारा कोई काम नहीं कर पाएंगे, पहले तुम्हारे दुश्मन भारत का भला करना है हमें तो रिपोर्ट देकर। भले जैश-ए-मोहम्मद के लोग तुम्हारे यहां रहकर काम कर रहे हों लेकिन भारत को बताना हमारे जैसे दादाओं के लिए जरुरी है। नहीं तो यार तुम लोग भिड़ोगे कैसे और हमारा फायदा होगा कैसे।
एक अमरीकी मित्र हमें भी मिल गए, पूछ लिया यार तुम लोग अपना काम धाम छोड़कर वाकई जग भलाई के काम कर रहे हो, तुम्हें कौनसा नागरिक सम्मान दूं समझ नहीं आ रहा। उस अमरीकन ने पहले इधर उधर ताका झांका और हमारे कान के पास फुसफूसाया....यार हमारी हालत काफी खराब है। डॉलर रोज कमजोर होता जा रहा है, क्रूड के दाम आसमान पहुंच रहे हैं। सोने में निवेश बढ़ रहा है। हमारी तो आर्थिक हालत बिगड़ रही है, मंदी से उबरे तो अपने लिए कुछ करें नहीं तो तुम्हारे लिए ही करेंगे। हमने कहा...तुम्हारा मतलब है मैं तो विधवा होउंगी लेकिन तुझे भी सुहागिन नहीं रहने दूंगी। वह बोला...नो...नो...हमने लताड़ा यानी हम दस फीसदी और चीन 11 फीसदी से ज्यादा की विकास दर हासिल कर रहा है तो तुम्हें सुहा नहीं रहा। तुम तो मंदी में बैठ ही गए, बस हर साल एक के बाद एक देश पर हमला कर वहां से अपने लिए पैसा जुटा लेते हो दादागिरी करने का। जैश-ए-मोहम्मद की रिपोर्ट देकर भारत के कमोडिटी, रियॉलिटी और इक्विटी बाजारों में मंदी के झटके देना चाहते हो ताकि आम आदमी का पैसा तुम्हारे देश के एफआईआई जो हमारे यहां काम कर रहे हैं, उनके बैंक खातों में चला जाए। लानत है ऐसी चिंता पर यार।
आज हमें अनेक लोगों के फोन आए कि बाजारों का क्या होगा यह तो सब उल्टा होने जा रहा है। हमारा कहना है कि भारतीय गुप्तचर एजेंसियां भी काफी सक्षम है और घबराने की कोई जरुरत नहीं है। अमरीका कब से यह पता लगाने का काम कर रहा है कि भारत में पैसा जैश-ए-मोहम्मद के लोग लगा रहे हैं, क्यों नहीं उसने भारत की एजेंसियों को साथ लिया और उन लोगों या कंपनियों के नाम क्यों नहीं घोषित किए जो भारतीय बाजार में पैसा लगा रहे हैं ऐसे आंतककारी संगठन का। क्या अमरीका यह जांच कार्य भारत में कर रहा था और यदि हां तो क्या उन्होंने ऐसी जांच से पहले भारत सरकार को जानकारी दी थी। खुद अमरीकन यदि भारत आए थे और ऐसी रिपोर्ट की पुष्टि कर रहे थे तो क्या उन्होंने अपने मकसद भारत सरकार को बताए थे। यदि चुपचाप पुष्टि कर रहे थे तो वे चोरों की तरह क्यों घुसे। अमरीका ने रिपोर्ट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकाने और निवेश करने वालों के नाम, पते क्यों नहीं जारी किए ताकि वहां हमला कर उन्हें नष्ट किया जा सके। जिन लोगों के पास भारत में इस संगठन का पैसा पहुंचा है, उन्हें लतियाया जा सके।
केवल कागजी रिपोर्ट पेश करना आसान है मिस्टर बुश। आपके दोस्त डिक चीनी ने तेल के धंधे में क्या क्या किया सारी दुनिया जानती है। क्या उन्होंने और उनकी कपंनी ने सारा काम और निवेश ईमानदारी से किया। अमरीकनों ने जहां जहां निवेश किए हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए। क्या सारा निवेश पूरी तरह ईमानदारी के साथ और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से किसी भी देश में गलत कार्यों के लिए निवेश नहीं किया है। मैं आतंककारियों और सत्ता में आकर लाइसेंसधारी आतंकी बनकर निवेश दोनों के खिलाफ हूं। हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भी कहा था कि शेयर बाजार में आतंककारी संगठनों का पैसा लगा है, लेकिन उन्होंने नाम बताएं इन लोगों की कंपनियों के और निवेशकों के। भारतीय बाजारों में भी यह चर्चा अकसर होती है कि नेताओं और प्रशासकों का दो नंबर का पैसा बाजारों में लगा हुआ है लेकिन कानून सबूत मांगता है और वह किसी के पास नहीं है, जब तक कि सब कुछ पकड़ा न जाए कुछ नहीं हो सकता। निवेशक तो यहां तक कहते हैं कि शेयर बाजार, कमोडिटी बाजारों में आने वाले तगड़े झटके खुद सरकार में बैठे मंत्रियों की मिलीभगत से आते हैं। इनसाइडर बिजनैस किया जाता है, लेकिन सबूत न होने से कुछ नहीं हो पाता। यहां हम एक बात कमोडिटी बाजार की करते हैं सरकार मानती है कि दलहन के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं और इन्हें सस्ता करने के लिए वायदा रोकना जरुरी है तो लोग कहने लगे हैं कि जब तुअर और उड़द के वायदा कारोबार पर रोक लग गई तो चने पर रोक क्यों नहीं लगी। चने पर रोक न लगने पर कई कारोबारियों का कहना था कि इसमें दक्षिण भारत के बड़े बड़े सटोरिएं शामिल हैं और इस पर कभी रोक नहीं लग सकती जब तक उनकी पोजीशन है। लोग कह रहे हैं कि मानसून में सीमेंट पर एक्साइज ड्यूटी कम हो जाएगी क्योंकि दक्षिण भारत की एक बड़ी सीमेंट कंपनी में कुछ सत्ताधारियों का पैसा लगा है और कंपनी को एक्साइज बढ़ने से बड़ा मुनाफा नहीं हो रहा है। ये बातें कहां से पैदा होती है।
जैश के साथ सत्ता में कर रहे ऐश वालों के पैसे भी आतंकियों के पैसे से कम नहीं है। खैर अच्छी बात तब होगी, जब हमारी सरकार ईमानदारी के साथ आतंककारियों और भ्रष्ट नेताओं व नौकरशाहों के पैसे को ढूंढकर इन्हें सजा दे और बाजारों को अधिक पारदर्शी बनाएं। भारतीय संविधान की शपथ लेकर संसद में बैठने वाले बाबूभाई कटारा और सवाल पूछने के लिए धन लेने वाले सांसद जब देश को चला रहे हो तो कुछ भी हो सकता है। सरकार में बैठे लोग ऐसे भ्रष्ट सांसदों के चरित्र और कामकाज का पता नहीं लगा पाई तो मुझे मुशिकल लगता है कि वह जैश के पैसे को खोज पाएगी।
3 comments:
बड़े ज़ोरदार अंदा्ज़ में लिखा है भाई आपने.. असर छोड़ता है..
भाइ वाह
इसे कह्ते हैं बखिया उधेडना............
मुझ जैसे कुढ मगज को भी अर्थ शास्त्र समझा दिया...
बधाइ
यह हुई ना बात.. बहुत खुब लिखे हो.. बधाई. मजा आया, और समझ भी आया :)
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