राजस्थान जन्म और महाराष्ट्र कर्म भूमि होने के बावजूद मुझे गुजरात से बेहद प्यार है। इस राज्य के अनेक नगर मुझे सुहाने लगते हैं। कुछ दिनों से अवकाश पर हूं, जिसकी वजह से ब्लॉग पर भी नियमित लेखन नहीं है। कल सुबह ही राजकोट और अहमदाबाद घूमकर लौटा हूं। मुंबई आते समय गुजरात क्वीन ट्रेन में एक युवक सामने की सीट पर बैठा हुआ था और मोबाइल पर बात कर रहा था कि सीमेंट बनाने के लिए कौन कौन सा कच्चा माल काम में आता है। फोन पर सामने वाले ने जो बताया उसके बाद उसका जवाब था कि मेरा यह सवाल सही हो गया। मैंने भी बात छेड़ दी कि सीमेंट बनाने के कारखाने में परीक्षा देने गए थे क्या। उस युवक ने बताया नहीं, रेलवे में ड्राइवर की जगह निकली है और वही परीक्षा देने यहां नवसारी से आया था। मैंने पूछा क्या यह पहला प्रयास है, उसका कहना था नहीं, यह मेरा 12 वां प्रयास है और एक सप्ताह बाद मुंबई में भी रेल ड्राइवर की परीक्षा देने जाना है। मैंने सोचा लगे रहो मोहम्मद गौरी की तरह। लेकिन फिर उस युवक से कहा कि सेना क्यों नहीं ज्वॉइन कर लेते....एक दो प्रयास में ही वहां बात बन जाएगी। उस युवक का कहना था कि घर वाले सेना में जाने के खिलाफ हैं, सेना में जाने से अच्छा है कि यहीं कोई छोटा मोटा काम कर लूं।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कहा था कि सेना में गुजरात रेजीमेंट होनी चाहिए। लेकिन जब गुजराती युवाओं में सेना के प्रति मोह ही नहीं है तो कैसी रेजीमेंट और कैसी बटालियन। इस सच को सभी जानते हैं कि गुजराती परंपरागत रुप से योद्धा जैसे स्वभाव के नहीं हैं, बल्कि कारोबार करने वाले हैं। गुजरात की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो तटीय इलाकों ने यहां की जनता को एक योद्धा नहीं बनाकर कारोबारी बना दिया। गुजरात की सीमाएं प्राकृतिक रुप से सुरक्षित होने से यहां की जनता योद्धा वाले स्वभाव की नहीं है। राज्य के कच्छ जिले के 18 हजार वर्ग किलोमीटर में कच्छ का रण है जो इसे बेहद सुरक्षित बनाती है। लेकिन दीर्घकाल की दृष्टि से देखा जाए तो गुजरात की जनता में एक योद्धा का स्वभाव पैदा करना जरुरी है। इस राज्य के उत्तर की ओर चार हजार किलोमीटर तक रुस, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, किर्दीस्तान और कजाकिस्तान जैसे देश हैं। पश्चिम में अरब सागर से लेकर अटलांटिक महासागर तक 11 हजार किलोमीटर के क्षेत्र में ऐसे अनेक देश हैं जहां एक बेहद जुनूनी कौम रहती है। इन देशों में से एक मंगोलिया में चंगेज खान को राष्ट्रीय नायक माना जाता है। उजेबेकिस्तान ने सोवियत संघ से अलग होते ही लेनिन और स्टालिन के बजाय तैमूर लंग को अपना महानायक घोषित किया। ग्रीस आज भी एलेक्जैंडर द ग्रेट को अपना महानायक मानता है। भारतीय राज्यों की बात करें तो राजस्थान में महाराणा प्रताप, पंजाब में गुरु गोविंद सिंह, महाराष्ट्र में शिवाजी को पूजा जाता है लेकिन गुजरात में वहां के महानायक सिद्धराज जयसिंह इस सम्मान से वंचित है। सिद्धराज जयसिंह के समय गुजरात को एक देश की तरह दक्षिण में कोंकण, उत्तर में अजमेर व सिंध, पूर्व में ग्वालियर तक फैला दिया गया था।
राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने वर्ष 2005 में जयपुर में कहा था कि देश में सभी नागरिकों के लिए सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। इससे युवा पीढ़ी में देश प्रेम और अनुशासन बढ़ेगा। विश्व के अनेक राष्ट्रों में सैन्य प्रशिक्षण जरुरी है और वहां कोई भी नागरिक इस तरह के प्रशिक्षण से इनकार नहीं कर सकता। गुजराती युवाओं को यदि गुजरात रेजीमेंट बनने का गौरव अपने राज्य को दिलाना है तो खुद को इसके लिए तैयार करना होगा। साथ ही अपने परिजनों को यह समझाना होगा कि सेना में जाना गौरव की बात है। अन्य नौकरियों या कारोबार की तरह सेना को भी अपनी वरीयता सूची में शामिल करना होगा। लेकिन यहां मैं एक बेहद कड़वी बात कहना चाहूंगा कि तम्बाकू, मावा, गुटखा और शराब के सहारे जीने वाले गुजराती युवाओं को इनका सेवन छोड़ने के अलावा पान की दुकानों पर फिजूल की गप्पबाजी से बाज आना होगा तभी भारतीय सेना में गुजराती रेजीमेंट बनेगी और गुजरात का गौरव बढ़ेगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
kamal dada,
ladte ladte to gujrat ke ye hal ho gaye hai.thik hi hai aau yoddha , changez khan banane ke liye prerit kare.....
सत्यवचन
आपके विचारों से सहमत हूँ. हालाकि गुजराती भी सेना में है, कारगील युद्ध में यहाँ के जवान भी शहीद हुए थे. मगर गुजरात रेजीमेंट एक सपने जैसा ही है. नरेन्द्र मोदी ने कई प्रदर्शनीयाँ लगवायी थी, नतीजे अभी तो सामने नहीं आये है. भविष्य का कह नहीं सकते.
"...कुछ दिनों से अवकाश पर हूं, जिसकी वजह से ब्लॉग पर भी नियमित लेखन नहीं है।..."
अच्छा! अब पता चला. तो ऑफ़िस में बैठकर ब्लॉगियाते रहते हैं आप. खुदा करे आपका बॉस आपको कभी छुट्टी न दे! :)
Post a Comment