August 15, 2014

चलते-चलते..भाग दो

15 अगस्‍त 2014
चलते-चलते...भाग दो
मुंबई से चला 5 अगस्‍त को आंध्र प्रदेश के शहर गुंटूर के लिए। वहां से आंध्र प्रदेश और उससे अलग होकर बने राज्‍य तेलंगाना के वरंगल, करीमनगर, हैदराबाद, अनंतपुर, कर्नूल और अदिलाबाद शहरों एवं इनसे सटे कई गांवों की यात्रा के बाद आज अदिलाबाद से रवाना हुआ महाराष्‍ट्र की उप राजधानी नागपुर के लिए। लेकिन नागपुर में रुकना नहीं है, वहां से सीधे मध्‍य प्र्रदेश के शहर छिंदवाड़ा निकल जाना है। उम्‍मीद है कि शाम सात बजे के करीब छिंदवाडा़ पहुंच जाऊंगा।
नागपुर से 14 जनवरी 1989 को हिंदी का एक अखबार शुरु हुआ था लोकमत समाचार। आज भी यह अखबार अपने क्षेत्र में अहम स्‍थान पर बना हुआ है। इस अखबार की संस्‍थापक टीम का सदस्‍य बनने का गौरव मुझे भी मिला। यहां उस समय संपादक थे एस एन विनोद जी। झारखंड एवं बिहार के प्रमुख हिंदी दैनिक अखबार प्रभात खबर के संस्‍थापक। हालांकि, अब इस अखबार का स्‍वामित्‍व ऊषा मार्टिन समूह के पास है। इस अखबार में जब मैंने ज्‍वाइनिंग की तो अनेक नए दोस्‍त बने, कुछ सीनियर थे लेकिन माहौल बेहद अच्‍छा और अपनापन तो इतना ज्‍यादा कि आज भी यदि इस अखबार के कार्यालय जाएं और पुराने साथी मिलते हैं तो प्रेमभाव जबरदस्‍त। यहां आने पर पुण्‍य प्रसून वाजेपयी, अनिल सिन्‍हा, सलिल सुधाकर, प्रकाश जी, जावेद जी हम साथ रहते थे, साउथ एवेन्‍यू की ओर सेवा सदन अपार्टमेंट में एक बड़ा फ्लैट दिया गया था लोकमत समूह की ओर से। दूसरा फ्लैट कुछ साथियों को मिला था लोकमत भवन के पीछे, जहां कमल पंकज जी, सत्‍येन्‍द्र सिंह एवं एक या दो और साथी रहते थे।
लोकमत समाचार और उसकी संस्‍थापक टीम के बारे में अपने इस यात्रानामा में कुछ समय बाद लिखूंगा लेकिन इस समय जो उल्‍लेख किया है, वह इसलिए कि छिंदवाडा में उस समय के हमारे साथी कमल पंकज इंतजार कर रहे हैं। पंकज जी कुछ साल बाद छिंदवाडा ही जा बसे और संभवत: अब वहीं के हो गए। उनको मैंने फोन किया कि पंकज जी छिंदवाडा आ रहा हूं। पंकज जी ने गर्मजोशी के साथ कहा आइए मोस्‍ट वैलकम। इंतजार करुंगा। आप नागपुर से आ रहे हैं तो अपना समय बताइए, गाड़ी आपको लेने भिजवा देता हूं। आराम से आ जाएंगे। उस समय तो मैंने हां कह दिया लेकिन बाद में तय किया कि आम जन वाहन से खुद ही छिंदवाडा चला जाऊंगा। कल दोपहर पंकज जी का फिर फोन आया कि कब पहुंच रहे हैं। मैंने कहा कि सीधे छिंदवाडा आ जाऊंगा। आप नागपुर कार भिजवाने का कष्‍ट ना करें। उन्‍होंने काफी आग्रह किया लेकिन मैंने कहा कि मैं पहुंच जाऊंगा तब पंकज जी ने कहा जैसी आपकी मर्जी। देश के कई हिस्‍सों में घूमने का काफी मौका मिला मुझे लेकिन छिंदवाडा पहली बार जा रहा हूं। नागपुर रहते हुए भी वहां नहीं गया था। इस बीच, लोकमत समाचार के मेरे प्रिय साथी जीवंत शरण जी से चर्चा हुई कि छिंदवाडा जा रहा हूं लेकिन नागपुर रुकूंगा नहीं, बाद में आता हूं वहां। नागपुर जाना होता है तो रुकने का कार्यक्रम भी जीवंत जी के घर ही होता है। नागपुर आने का जरा सा जिक्र छिड़ जाएं तो उससे पहले ही जीवंत जी कह देते हैं कि सीधे घर चले आना बेझिझक। और अब तो नागपुर कभी भी जाना हो तो खुद ही पहले फोन उठाते ही जीवंत जी को कह देता हूं घर आ रहा हूं। तब वे कहते हैं आइए ना भाई आपका ही घर है।
जीवंत जी ने बताया कि छिंदवाडा आप अपने आफिस कार्य के अलावा थोड़ा समय पातालकोट देखने के लिए जरुर निकालिएं। क्‍या पता फिर छिंदवाडा जाना हो या ना हो। उन्‍होंने बताया कि हम बचपन में सुना करते थे ना कि जमीन के नीचे पाताल लोक है, जहां बौने बौने लोग रहते हैं, बौने पशु और उससे जुड़ी दादी-मां की कहानियां। पाताल लोक को लेकर कई कहानियां-किस्‍से। बस वही पाताल लोक छिंदवाडा में है। काफी गहराई पर होने से ऊपर से देखने में सब कुछ बौना लगता है और यही है वह जगह। उन्‍होंने बताया कि सबसे पहले कमलनाथ इस जगह गए और तब पता चला कि यह धरती ही है, पाताल नहीं और रहस्‍य खुला कि काफी ऊंचाई से देखने की वजह से सब बौना लगता है, असल में ये आदिवासी लोग है और सब कुछ हमारी तरह का ही है। मैंने अदिलाबाद रेलवे स्‍टेशन पर ट्रेन के आने का इंतजार करते हुए गुगल में पाताल कोट को लेकर खोजा और काफी सामग्री मिली भी। पाताल कोट के बारे में इसी सामग्री से साभार लेकर कुछ बातें आपके लिए भी। उत्‍सुकता तो होती है जब हम पृथ्‍वी लोक के अलावा अन्‍य किसी लोक की चर्चा करते हैं तो..छिंदवाडा से 62 किलोमीटर एवं तामिया विकास खंड से महज 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पातालकोट। समुद्र सतह से 3250 फुट ऊंचाई पर एवं भूतल से 1000 से 1700 फुट गराई में यह कोट यानि “पातालकोट” स्थित है। हमारे पुरा आख्यानों में “पातालकोट” का जिक्र बार-बार आया है। लंका नरेश रावण का एक भाई, जिसे अहिरावण के नाम से जाना जाता था, के बारे में पढ़ चुके हैं कि वह पाताल में रहता था। राम-रावण युद्ध के समय उसने राम और लक्ष्मण को सोता हुआ उठाकर पाताल लोक ले गया था, और उनकी बलि चढाना चाहता था, ताकि युद्ध हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाए। इस बात का पता जैसे ही वीर हनुमान को लगता है वे पाताल लोक जा पहुंचते हैं। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है और अहिरावण मारा जाता है। उसके मारे जाने पर हनुमान उन्हें पुनः युद्धभूमि पर ले आते हैं।
एक खोज के अनुसार पातालकोट की तलहटी में करीब 20 गांव सांस लेते थे, लेकिन प्राकृतिक प्रकोप की वजह से वर्तमान समय में अब केवल 12 गांव ही शेष बचे हैं। एक गांव में 4-5 अथवा सात-आठ से ज्यादा घर नहीं होते। जो बारह गांव हैं, उनके नाम इस प्रकार है-रातेड, चमटीपुर, गुंजाडोंगरी, सहरा, पचगोल, हरकिछार, सूखाभांड, घुरनीमालनी, झिरनपलानी, गैलडुब्बा, घटनलिंग, गुढीछातरी एवं घाना। नागपुर के राजा रघुजी ने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से तंग आकर मोर्चा खोल दिया था, लेकिन विपरीत परिस्थितियां देखकर उन्होंने इस गुफ़ा को अपनी शरण-स्थली बनाया था, तभी से इस खोह का नाम “राजाखोह” पडा। राजाखोह के समीप गायनी नदी अपने पूरे वेग के साथ चट्टानों को काटती हुई बहती है।

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