
कल तो यह संस्था प्रधानमंत्री को बुलाएगी और कह देगी कि हमने देश का एक और विभाजन करने का प्रस्ताव प्रधानमंत्री की हाजिरी में पारित किया था, लाओं एक और टुकड़ा दो। दारुल उलम के नए फतवे का शिवसेना और भाजपा ने परंपरागत रुप से विरोध किया है। लेकिन मैं दारुल उलम के पदाधिकारियों और खासकर फतवा विभाग के उप प्रमुख मुफ्ती अहसान से यह पूछना चाहता हूं कि यदि वे इस देश की इज्जत नहीं कर सकते तो पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते। अथवा किसी ऐसे इस्लामिक राष्ट्र में जाकर रहे जहां वे अपनी मनमानी कर सकें। लेकिन ये लोग ऐसा कभी नहीं कर पाएंगे।
असल में राष्ट्रविरोधी मुसलमान इस देश के हैं भी नहीं, इब्राहिम लोदी, बाबर, चंगेज खान, मोहम्मद गौरी या गजनी कोई भी हो...सभी दूसरे देश की धरती से भारत आए और लूटकर चले गए। यहां शासन किया, हिंदूओं को जबरन मुसलमान बनाया। ऐसे राष्ट्रविरोधियों को हिंदुस्तान या वंदे मातरम् से प्यार क्यों होगा। क्या मुसलमान अपनी मां की इज्जत नहीं करते? जो कह रहे हैं कि हम अल्लाह के अलावा किसी और की प्रार्थना नहीं कर सकते? यदि अपनी सगी मां की इज्जत कर सकते हो तो देश भी मां है उसकी इज्जत करने में इतराज क्या है? इस्लाम में कहां लिखा है कि वंदे मारतम् से खुदा नाराज हो जाएगा, वह तुम्हें जहन्नुम में डाल देगा? बताओं कहां लिखा है। मूर्ख राष्ट्रविरोधियों पढ़ो वंदे मातरम् क्या कहता है जबकि इसकी तुलना में दूसरे देशों के राष्ट्रगीत तो अपने विरोधियों से बदला लेना ही सीखाते हैं जबकि वंदे मातरम् शांति प्रिय राष्ट्रगान है।
वंदे मातरम् तो मातृप्रेम का गीत है, लेकिन विश्व के अनेक देशों के राष्ट्रगीत तो ऐसे हैं जिनसे दूसरे देशों की जनता को काफी ठेस पहुंचती है। ये देश दूसरे देश के अपमान या मानहानि के बजाय स्वयं के देश की प्रजा के स्वाभिमान, अभिमान और गुमान की ही पहली चिंता करते हैं। लेकिन हमारी बात अलग है। भारत ने सदैव विश्वशांति को प्राथमिकता दी है। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद भी चाहते थे कि संसद की कार्यवाही वंदे मातरम् के गायन से हो, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
छोटे छोटे देशों के राष्ट्रगीत भी अनेक बार क्रूर और हिंसक होते हैं। इन्हें आततायियों और शत्रु को फटकार लगाने के लिए लिखा गया है। छोटे से देश डेनमार्क का उदाहरण लें। डेनमार्क के राष्ट्रगीत में एक लाइन है जो राजा क्रिश्टीएन के वीरत्व को उकसाती है। उनकी तलवार इतनी तेज चलती थी, शत्रु के कलेजे और सिर को एक साथ काट फेंकती थी। मध्य अमरीकी देश ग्वाटेमाला के राष्ट्रगीत में एक लाइन है-किसी आततायी को तेरे चेहरे पर नहीं थूकने दूंगा ! बल्गारिया के राष्ट्रगीत में भी आहूति की बात कही गई है। बेशुमार योद्धाओं को बहादुरी से मारा है-जनता के पवित्र उद्देश्य के लिए। चीन के राष्ट्रगीत में खून से सनी एक लाइन है -हमारे मांस और खून का ढ़ेर लगा देंगे-फिर से एक नई महान चीन की दीवार बनाने के लिए....।
अमरीका में मेरीलैंड नामक एक राज्य है। इस राज्य का भी राज्यगीत या राष्ट्रगीत है, जो वीरत्व से भरा पड़ा है, इसमें शब्द हैं कि- बाल्टिमोर की सड़कों पर फैला हुआ है देशभक्तों का नुचा हुआ मांस- इसका बदला लेना है साथियों...! इन सभी की तुलना में सुजलां, सुफलां मलयज शीतलाम् अथवा मीठे जल, मीठे फल और ठंडी हवा की धरती जैसे विचारों का विरोध हो रहा है। यह कितना साम्प्रदायिक लग रहा है?ब्रिटेन का राष्ट्रगीत ‘गॉड सेव द क्विन (या किंग)’ को 19वीं सदी की शुरूआत में स्वीकृति मिली। वर्ष 1745 में इसे पहली बार सार्वजनिक तौर पर गाया गया, लेकिन इसकी रचना किसने की, किसने संगीत दिया इस विषय में जरा अस्पष्टता है। लेकिन इससे पूर्व जिस गीत ने राष्ट्रगीत का दर्जा पाया, वह कैसे भाव व्यक्त करता है ? रुल ब्रिटानिया, रुल दि वेव्ज/ब्रिटंस नेवर शेल बी स्लेव्ज (देवी ब्रिटानिया राज करेगी, समुद्रों पर राज करेगी, ब्रिटिश कभी गुलाम नहीं बनेंगे) इस गीत में आगे है- तेरे नगर व्यापार से चमकेंगे/हरेक किनारे पर तेरी शोभा होगी....।
बेल्जियम का राष्ट्रगीत ‘ब्रेबेनकॉन’ था। जिसे एक फ्रेंच कामेडियन ने लिखा था। इस गीत में डच प्रजा के खिलाफ विष उगला गया था। इसके शब्दों में तीन बार संशोधन करना पड़ा। वर्ष 1984 में आस्ट्रेलिया ने ‘एडवांस आस्ट्रेलिया फॉर’ राष्ट्रगीत निश्चित किया। रुस का राष्ट्रगीत ‘जिन सोवियत स्कोगो सोयूजा’ (सोवियत संघ की प्रार्थना) 1944 में स्वीकार किया गया और 1814 में अमरीका ने फ्रांसीस स्कॉट नामक कवि के ‘स्टार स्पेंगल्ड बेनर’ राष्ट्रगीत के रुप में स्वीकार किया। इससे पूर्व रुस ने ‘इंटरनेशनल’ को राष्ट्रगीत माना था।
इजरायल का राष्ट्रगीत ‘हा-निकवा’ केवल इतना ही है। दिल के अंदर गहरे गहरे तक/ यहूदी की आत्मा को प्यास है/ पूर्व की दिशा/ एक आखं जायोन देख रही है/ अभी हमारी आशाएं बुझी नहीं हैं/ दो हजार वर्ष पुरानी हमारी आशा/ हमारी धरती पर आजाद प्रजा होने की आशा/ जायोन की धरती और येरुश्लम...। फ्रांस का राष्ट्रगीत ‘लॉ मार्सेस’ विश्व के सर्वाधिक प्रसद्धि राष्ट्रगीतों में एक है। वर्ष 1792 में फौज के इंजीनियर कैप्टन कलोड जोजफ रुज दि लिजले ने अप्रैल महीने की एक रात यह गीत लिखा और इसके बाद इतिहास में हजारों फ्रांसीसियों ने इस गीत के पीछे अपने को शहीद कर दिया। बहुचर्चित इस राष्ट्रगीत की दो लाइनें इस प्रकार है अपने ऊपर जुल्मगारों का रक्तरंजित खंजर लहरहा है। तुम्हें सुनाई देता है अपनी भूमि पर से कूच करके आते भयानक सैनिकों की गर्जनाएं..?...साथी नागरिकों ! उठाओं शस्त्र, बनाओं सेना/ मार्च ऑन, मार्च ऑन/ दुशमनों के कलुषित रक्त से अपनी धरती को गीली कर दो...। फ्रांस के इस राष्ट्रगीत की इन दो पक्तिंयों की चर्चा समय असयम फ्रांस और उसके पड़ौसी देशों में होती रहती है। अभी इन दो पक्तियों की बजाय जो नई दो पंक्तियां सुझाई गई है वे थीं स्वाधीनता, प्रियतम स्वाधीनता/ शत्रु के किले टूट गए हैं/फ्रेंच बना, अहा, क्या किस्मत है/ अपने ध्वज पर गर्व है.../ नागरिकों, साथियों/ हाथ मिलाकर हम मार्च करें/ गाओं, गाते रहो/ कि जिसने अपनी गीत/ सभी तोपों को शांत कर दें..लेकिन फ्रांस की जनता ने इस संशोधन को स्वीकार नहीं किया। मूल पंक्तियों मे जो खुन्नस थी, जो कुर्बानी भाव था वह इनमें नहीं था। आज भी पुरानी पंक्तियां ज्यों की त्यों हैं और फ्रांसीसी फौजी टुकडि़यां इन्हें गाते गाते कूच करती हैं।
शायद सर्वाधिक विवादास्पद राष्ट्रगीत जर्मनी का ‘डोईशलैंड युबर एलिस’ है। जर्मनी के कितने ही राज्य पूरे गीत को राष्ट्रगीत के रुप में मानते थे। हिटलर के जमाने में भी यही राष्ट्रगीत था। लेकिन 1952 से जर्मनी ने तय किया कि केवल तीसरा पैरा ही राष्ट्रगीत रहेगा। जर्मनी के राष्ट्रगीत का पहला पैरा इस प्रकार है जर्मनी, जर्मनी सभी से ऊपर/जगत में सबसे ऊपर/ रक्षा और प्रतिरक्षा की बात आए तब/ कंधे मिलाकर खड़े रहना साथियों/मियुज से मेमेल तक/ एडीज से बेल्ट तक/जर्मनी, जर्मनी सभी से ऊपर/जगत में सबसे ऊपर... यह गीत जबरदस्त चर्चा का विषय बने यह स्वाभाविक है, आज मियुज नदी फ्रांस और बेल्जियम में बहती है। बेल्ट डेनमार्क में है और एडीज इटली में है। जर्मनी के इस राष्ट्रगीत में पूरे जर्मनी की सीमाओं के विषय में बताया गया है। कितने ही लोगों के अनुसार यह ग्रेटर जर्मनी है और इसमें से उपनिवेशवाद की बू आती है जबकि जर्मनी की ऐसी कोई दूषित भावना नहीं है। जहां फ्रांस में पंक्तियां बदलने की चर्चा होती है, वहां जर्मनी में ऐसा कुछ नहीं है। केवल जर्मनी ने ही राष्ट्रगीत के रुप में अहिंसक तीसरे पैरे को राष्ट्रगीत राष्ट्रगीत में स्वीकार किया है। इटली में भी 1986 में एक आंदोलन हुआ था। वहां राष्ट्रगीत जरा कमजोर महसूस किया जा रहा था। जनमत का कहना था कि संगीतज्ञ बर्डी के बजाय तेजतर्रार देशभक्ति वाले का गीत राष्ट्रगीत होना चाहिए। राष्ट्रगीत चर्चा में आए इससे चिंता नहीं करनी चाहिए।
प्रत्येक देश के राष्ट्रगीत में स्वाभिमान, गर्व होता है, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगीत ही ऐसी प्रेरणा होती है जिसके लिए सारी की सारी पीढि़यां सर्वस्व न्यौछावर कर देती हैं। भारत में फांसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारियों के अंतिम शब्द होते थे ‘वंदे मातरम्...!...’
19 comments:
वंदे मातरम् गायेंगे दारूल उलम को भगायेंगे।
वन्दे मातरम
वन्दे मातरम
वन्दे मातरम
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जो वन्दे मातरम नहीं कह सकते ऐसे देशद्रोहियों को भारत छोड़ देना चाहिए. मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ. खोजपूर्ण लेख के लिए धन्यवाद.
जय हिंद
लग रहा है काफी खोजबीन करके लेख लिखा है, इसके लिये शुक्रिया... बहुत सारी बाते जो जानकारी मे नहीं थी उनके बारे मे जान गयी। जहां तक फतवा जारी करने की बात है... मै इतना ही कह सकुँगी कि मेरे कैम्प मे इस्लाम धर्म के अनुयायी भी आते हैं पर उन्हे वन्दे मातरम बोलने से ऐतराज नहीं है। वो भले उद्विग्न प्राणायाम न करें पर भ्रामरी प्रणायाम करने से उन्हे परहेज नही है। इससे मुझे ऐसा लगता है कि सिर्फ शिर्ष पर बैठे कुछ लोग नेतागिरी कर रहे हैं, आम जनता उतनी उद्विग्न नही है।
बहुत अच्छा लिखा आपने, खोजपूर्ण लेख के लिए धन्यवाद' परन्तु आपको यह नहीं लगता कि यह हम पर थोपा जा रहा राष्ट्रगीत वह नही होता जो थोपा जाये, इस गीत बारे में अपना ज्ञान बढाना चाहें तो पढें
''वन्दे मातरम्’ का अनुवाद, हकीक़त, & नफ़रत की आग बुझाइएः -डा. अनवर जमाल''
http://hamarianjuman.blogspot.com/2009/11/vande-matram-islamic-answer.html
ईश्वर इन्हें सद्बुद्धि दे !
परिस्थिती को इस हद तक़ पहोंचनेमें सबसे ज्यादा बढ़ावा सीधेव रूपसे नहीं तो वोटबेन्क की लालचमें कोन्ग्रेस पक्ष और कोन्ग्रेस की सम्पूर्ण या इसके गठबंधन वाली सरकारोनें ही दिया है । मनमोहन सिंघजी का निवेदन याद करना काफ़ी है 'इस देश की सम्पत्ती पर प्रथम हक्क मुस्लीमों का है ।' वैसे मेरे काफ़ी मुस्लीम मित्रो है, जो राष्ट्रवादी भावना सम्पूर्ण रूपसे रख़ते है । और उनमें छोटे कारीगर वर्गमें सही काम और सही दाम लेने की भावना बहोत मज़बूत है और उनके मनमें हिन्दु मुस्लीम जैसी बात कम से कम उस समय नहीं आती है । पर एक वर्ग ऐसा भी है जो आज भी मानता है, कि अंग्रेजोंने शहनशाहे-हिन्द मुघल पादशाहों से सत्ता छीनी थी, तो आझादी के बाद सत्तांतरण उनके पक्षमें ही होना चाहीए था । आप का देश विदेश के राष्ट्रगीतो के अभ्यास सराहनिय है ।
पियुष महेता ।
सुरत ।
अगर आप वन्दे मातरम की वक़ालत करते हैं और साथ ही पूर्व जन्म में भी अकीदा रखते है तो यह पूर्ण रूप से परस्पर विरोधी विचारधारा होगी और यह संभव नहीं कि दोनों एक साथ लागू हो सकेंगे. कैसे ? आईये मैं बताता हूँ कि कैसे राष्ट्रवाद एक बुनियाद-रहित विचारधारा है, यदि आप पूर्वजन्म में विश्वाश रखते है तो यह संभव है कि आपका जन्म दोबारा मनुष्य के रूप में हो सकता है और हो सकता है कि आप भारत के अलावा दुसरे मुल्क में पैदा हो सकते हैं. मिसाल के तौर पे आप अगर आपके पिता जी या दादा जी दोबारा जन्म लेते हैं और अबकी बार वह अफगानिस्तान या पकिस्तान या चाइना आदि में कहीं जन्म लेते हैं तो क्या वह भारत के खिलाफ़ लडेंगे तो नहीं? क्या वह भारत से नफ़रत तो नहीं करेंगे?? ऐसा तो नहीं कि वे इस जन्म में तालिबान से मिलकर अपने प्यारे हिन्दोस्तान के खिलाफ़ आतंकी घटनाओं में तो लिप्त नहीं रहेंगे???
ye bhaarat jaroor chhodenge lekin ek aur tukdaa karke !
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स्वचछ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज वाले भाई सा आप पहले यह बताएं कि आप भारत विरोधी है या भारत के पक्ष में। जवाब हां या ना में दें। फिर मैं आपकी इस टिप्पणी का जवाब दूंगा कि हम हिंदूओं के पुरखे किस देश में जन्मे हैं और क्या कर रहे हैं।
दारुल उलम KO AAJKAL KITNE LOG MAANTE HAIN ... HAAN JITNE BHI MAANTE HAIN UNKO IS BAAT KA TO KAM SE KAM VIRODH KARNA CHAHIYE ... BANDE MAATRM HAMAARA RAATR GEET HAI .... RAHEGA ..
pta nhi aajkal desh me ho kya rha hai
kabhi kattrpanthi kashmir me shree amrnath jameen ke liye karte hai
to kabhi vande matram par fatwa jari karte hai
ye kuch ase mudde hai jo desh ki vichardhara ko batate hai
jab ki har desh ka rashtrgeet hai
ase galat fatwo par jald hi ankush nhi lga to kal ko kattrpanthi muslim par koi asa fatwa nhi jari kar de ki desh ke nam se inhe dikkat hai
kattrpanthiyo par lagam lagana jroori hai
अरे वाह शर्मा जी, दिल खुश कर दिया जी… शेयर बाजार से बाहर अचानक ऐसा धमाकेदार लेख… यही कमाल है वन्देमातरम का… बेहतरीन लेख… बधाई और शुभकामनाएं… मेरी तरफ़ से 1001 बार वन्देमातरम…
sharma uncle , aapka lekh padkar maja aa gaya, kuch log isi desh me rahte hai, yahi ki khate hai, aur isi desh ki peeth me chura ghopne ke liye mauke ki talaash me rahte hai,
vande matram
vande matram
vande matram
vandemataram
वन्दना करो उस ईश्वर की जिसने सारी सृष्टि बनायी, अर्थात कहो 'वन्दे ईश्वरम'
जो देश के प्रतिकों का सम्मान नहीं कर सकते उन्हे धिक्कार है धिक्कार है धिक्कार है.
भाड़ में जाए ऐसे लोग.
बहुत सारी जानकारी देते हुए लिखा गया एक सशक्त आलेख .. धन्यवाद !!
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