April 15, 2008

तिब्‍बतियों इस कमजोर दलाई लामा को हटाओं, यह तो चीन के साथ है


तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा ने धमकी दी है कि अगर तिब्बत में हिंसा नहीं थमी, तो वह निर्वासित सरकार के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे देंगे। दलाई लामा ने कहा है कि अगर तिब्बत में हिंसा बेकाबू हुई तो मेरे पास इस्तीफा देने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं होगा। अगर तिब्बत के ज्यादातर लोग हिंसा चाहते हैं, तो वह अपना पद छोड़ देंगे।

दलाई लामा ने जिस निर्वासित सरकार के प्रमुख पद से इस्‍तीफा देने की बात कही है, वह कैसी सरकार है। यह सरकार चलती कहां हैं। यदि दलाई लामा में जरा भी स्‍वाभिमान और अपने देश के लिए मर मिटने का जज्‍बा होता तो वह आम तिब्‍बतियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे होते। वे इस समय आम तिब्‍बति के साथ नहीं है। उन्‍होंने खुद कह दिया है कि तिब्‍बतियों को चीन के साथ रहना चाहिए। अपने देश का जो गर्व होता है और जो स्‍वाभिमान होता है, वह दलाई लामा में नहीं है।

भारत में शरण लेकर उन्‍होंने दुनिया भर में अपने देश के लिए कोई ढंग से आंदोलन नहीं चलाया और हमेशा दो तरफा बातें करते रहें जिसमें बीच बीच में चीन का जबानी चेतावनी देना उनका खास हथियार रहा। जिस देश, राष्‍ट्र में जन्‍म लिया, बलिदान उसी पर हो जाए....ऐसी प्रेरणा उनके खून में नहीं रही। भाग आए भारत और टिक गए धर्मशाला में। अपने देश पर मर मिटना किसी के लिए भी सौभाग्‍य की बात हो सकती है। जो लोग आज तिब्‍बत को आजाद कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं उन्‍हें मैं सलाम करता हूं।

ओलम्पिक मशाल में हमारे फुटबाल खिलाड़ी बायचुंग भूटिया और पुलिस अधिकारी किरण बेदी ने भाग न लेने का जो फैसला किया वह तारीफ के योग्‍य है। दलाई लामा को इन्‍हीं से कुछ सीख लेना चाहिए। दलाई लामा ने केवल दुनिया घूमने और जगह जगह अपना सम्‍मान कराने एवं पुरस्‍कार लेने के अलावा क्‍या किया। पुरस्‍कार पाने के पुतले बन गए हैं ये दलाई लामा। अपने देशवासियों को कह रहे हैं कि चीन के साथ चुपचाप रहो, अरे उससे आजाद कब कराओगे अपने देश को। यह कैसी वीरता कि चीन के आगे झुक गए दलाई लामा।

दलाई लामा जिसे लोग अपनी आंखों और सिर पर बैठा लेते हैं, साक्षात भगवान का रुप बताते हैं वह तो भगोड़े जैसा व्‍यवहार कर रहे हैं और चीन के साथ देश के विलय को मान चुके हैं। हे, तिब्‍बतवासियों खुद लड़ो अपनी लड़ाई और अपने देश को आजाद कराने की लड़ाई तब तक लड़ना जब तक एक भी तिब्‍बतवासी जिंदा है। छोड दो ऐसे दलाई लामा को। आज चीन ने तिब्‍बत को हड़प लिया और अब भारत के कुछ हिस्‍सों पर कब्‍जा करने की कोशिश करेगा। चीन को रोकना जरुरी है। जिस देश की नीयत में खोट हो वह हमारा भाई नहीं हो सकता। हिंदी चीनी भाई भाई नहीं।

6 comments:

Manas Path said...

फ़ाण्ट नही दिख रहा सर.

Sanjay Tiwari said...

आप तो भावुक हो गये हैं. लेकिन दलाई लामा के बारे में आपका आंकलन सही नहीं है.

Jitendra Chaudhary said...

भई, इस बारे मे तो मै भी यही कहूंगा कि आपका आकलन, तथ्यों पर कम और भावुकता पर अधिक आधारित है।

दलाई लामा तिब्बत की स्वायत्तता की बात कर रहे है, अंहिसा की बात तो वे शुरु से ही करते आए है,आज कोई नयी नही है।

चलिए, कुछ हट कर सोचते है... दलाई लामा की जगह पर हुर्रियत कांफ़्रेंस को रख लीजिए और भारत की जगह पाकिस्तान को, तिब्बत की जगह कश्मीर और भारत की जगह चीन। फिर से इस लेख को नए परिपेक्ष्य मे पढिएगा और फिर विचार करिएगा। जिस तरह से आप तिब्बत को लेकर भावुक हो रहे है, उस तरह से यदि पाकिस्तानी कश्मीर को लेकर भावुक होते है तो क्या ये गलत है?

Anonymous said...

कमल जी

नमस्कार ! आपके समक्ष पहली बार उपस्थित हुआ ।
आप विविध भारती वाले कमल जी हैं न !

बहुत सुना बहुत सीखा , आज जो कहता हूँ , कही न कही आप के शब्द मौजूद रहते हैं

आखिर आप सभी से तो सीखा ।

प्रथम आगमन पर आपका लेख नही पढ़ सका । बस मुलाकात की खुशी है …

:)

admin said...

भई मुझे तो यहॉं पर दुष्‍यंत कुमार का यह शेर याद आता है
मत कहो आकाश में कुहरा घना है।
यह किसी की व्‍यक्तिगत आलोचना है।

Dr Prabhat Tandon said...

हमेशा अंहिसा की बात्करने वाले दलाई लामा की सोच अब बदलती दिख रही है । शायद यह वक्त का तकाजा है । http://preachingsofbuddha.blogspot.com/2009/01/non-violence-cannot-tackle-terrorism.html