प्रमुख इस्लामिक संस्था दारुल-उलूम देवबंद ने फोटोग्राफी को शरीयत कानूनों के खिलाफ करार देते हुए इस पर पाबंदी लगाने वाला एक फतवा जारी किया है। हालांकि, समझा जाता है कि संस्था ने खुद अपने छात्रों और कर्मचारियों को फोटो पहचान पत्र जारी कर रखे हैं।
दारुल-उलूम के सूत्रों के मुताबिक 4 मौलवियों ने व्यवस्था दी कि फोटो खींचना या खिंचवाना शरीयत के तहत गैरकानूनी है। पाबंदी को कानूनी रूप नहीं दिया जा रहा है तो सिर्फ इसलिए कि आमतौर पर फोटोग्राफी काफी चलन में है। इन मौलवियों में फतवा विभाग के प्रमुख मुफ्ती हबीबुर्रहमान के अलावा मुफ्ती महमूद, मुफ्ती जैनूलइस्लाम, मुफ्ती जैफुरुद्दीन शामिल है। यह फतवा असम के एक सामाजिक संगठन द्वारा फोटोग्राफी को लेकर उठाए गए सवाल के जवाब में आया है।
गौरतलब है कि यह विवादास्पद फतवा ऐसे समय में आया है, जब देश के करीब एक लाख मुसलमान हज यात्रा की तैयारी कर रहे हैं और उनके पास फोटो वाले पासपोर्ट हैं। उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देशों ने फोटोग्राफी को इजाजत दे रखी है और उनकी सरकारों ने अपने नागरिकों को फोटो वाले पासपोर्ट और पहचान पत्र जारी कर रखे हैं।
इस बीच, शरीयत अदालत के एक सदस्य और उत्तर प्रदेश इमाम संगठन के अध्यक्ष मुफ्ती जुल्फिकार ने कहा कि फोटोग्राफी के शरीयत कानून के खिलाफ होने के बावजूद इससे बचा नहीं जा सकता, क्योंकि आमतौर पर यह काफी इस्तेमाल किया जाता है। फिर भी, लोगों को आपत्तिजनक तस्वीरों और गैर-जरूरी फोटोग्राफी से खुद को दूर रखना चाहिए। नवभारत टाइम्स से साभार
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1 comment:
सही कह रहे है, अमल होना चाहिए.
देखें ये लोग दुनिया को किस ओर ले जाते है..
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