यह तो सभी चाहते हैं कि उनके आफिस में सुंदर महिलाएं काम करें, लेकिन जिन आफिसों में ऐसा पहले से ही है, जरा वहां के बारे में पता कर लीजिए। दफ्तरों में महिला कर्मचारियों की बढ़ती संख्या का खामियाजा बेचारे पुरुष कर्मियों को भुगतना पड़ रहा है। ऐसा नहीं है कि इसके कारण उनकी नौकरी को कोई खतरा पैदा हो रहा है। दरअसल, इस वजह से उन्हें सज-संवर कर आफिस आना पड़ता है। जाहिर है महंगाई से लड़-झगड़ कर होने वाली बचत सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्च हो रहीहै।
पुरुष कर्मियों का खर्च बढ़ाने में कार्पोरेट जगत का सघन प्रचार अभियान भी अहम भूमिका निभा रहा है। इसके चलते वह अपनी साज-सज्जा के प्रति ज्यादा सजग हो गए हैं तथा कास्मेटिक्स, वेशभूषा और मोबाइल फोन के मद में बेतहाशा खर्च कर रहे हैं। इसका खुलासा देश के प्रमुख उद्योग चैंबर एसोचैम द्वारा कराए गए देशव्यापी सर्वेक्षण में हुआ है। इसके अनुसार 58 प्रतिशत युवा एवं मध्य आयु के लोग और उनकी 65 फीसदी संतानें इन वस्तुओं पर प्रत्येक माह 2500 रुपए से भी अधिक खर्च कर रही हैं। वर्ष 2000 में इन मदों में किया जाने वाला खर्च एक हजार रुपए प्रति माह ही था।
सर्वे में शामिल पांच हजार से अधिक उपभोक्ताओं में से 65 फीसदी ने कहा कि पिछले सात वर्षो के दौरान ब्रांडेड कास्मेटिक्स के मद में उनके खर्च 30 फीसदी बढ़े हैं। ऊपरी मध्य आयु (40 से 45 साल) के 57 फीसदी लोगों ने कहा कि पढ़ने और संजने-संवरने के मामले में वे पहले की अपेक्षा 22 फीसदी अधिक खर्च कर रहे हैं। कास्मेटिक्स पर खर्च के मामले में छात्र भी पीछे नहीं हैं। आखिर उनके कालेजों तो लड़कियां भी तो पढ़ती हैं। एसोचैम के मुताबिक 32 फीसदी छात्र इस मद में 700 से 1000 रुपए प्रति माह खर्च करते हैं। सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 61 फीसदी लोगों ने बताया कि वे मोबाइल फोन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कार्यस्थलों पर ही करते हैं।
एसोचैम के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत ने बताया कि रोचक बात यह है कि महिला कर्मियों की तुलना में पुरुष सहकर्मियों में कास्मेटिक्स के प्रति रुझान बढ़ा है। उन्होंने कहा कि पुरुष उपभोक्ता प्रति माह कास्मेटिक्स पर 300 से लेकर 500 रुपए खर्च करते हैं और ब्रांड वगैरह के बारे में खुद निर्णय लेते हैं। इनमें से 85 प्रतिशत गुणवत्ता को विशेष तवज्जो देते हैं। दूसरी ओर 75 प्रतिशत महिलाएं ब्रांड का चुनाव खुद करती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 75 फीसदी पुरुष उपभोक्ता बार-बार अपना मोबाइल हैंडसेट बदलते रहते हैं और इस मद में उनके खर्च महिला सहकर्मियों की तुलना में ज्यादा हैं। जागरण डॉट कॉम से साभार
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3 comments:
पुरुषों मे अपने सौन्दर्य के प्रति चेतना बढ़ी है । जरूरी नहीं कि यह महिला सहकर्मियों को आकर्षित करने के लिए ही हो !
सजना संवरना, सुंदर दिखना सबका हक है. क्या महिला क्या पुरूष. सिर्फ अंदाज का फर्क होता है. क्रीम पाऊडर लगानेवाले पुरूषों का नया नामकरण क्या करना चाहिए?
लगता है केवल हम ही ठन-ठन गोपाल हैं, नहीं तो बाक़ी पुरुषों पर ख़ामख़्वाह के कामों के ऊपर ख़र्च करने के लिए काफ़ी पैसा आ रहा है आजकल। :)
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