
May 20, 2007
विश्व युद्ध हिंदी ब्लॉगरों का

May 13, 2007
धंधा खोलो धर्म का

संत आसाराम बापू ट्रस्ट का एक मामला हाल में ‘इंडिया टीवी’ पर दिखाया गया जिसमें बताया कि कैसे-कैसे इस संत ने कई जगह करोड़ों रुपए की जमीन फोकट में हड़प ली है और खुद भू माफिया बन गए हैं। मुझे भी कई पत्रकार और गैर पत्रकार मित्रों के फोन आए कि यार इस कलम खिसाई से तो अच्छा है संत बन जाएं और मौज करें। मेरा कहना है कि संत क्यों बनें, क्यों नहीं एक धार्मिक चैनल ही मिलकर खोल लें और ढ़ेर सारा रुपया बनाएं। ‘सहारा समय’ हिंदी साप्ताहिक में 17 जनवरी 2004 को मेरा एक लेख इसी मसले पर छपा था जिसे जस का तस ब्लॉग पर दे रहा हूं।
लेख का शीर्षक था ‘चैनलों की चांदी...’ आप भी पढि़ए...पिछले तीन साल में भारत में धार्मिक चैनल के दर्शकों की संख्या में अच्छा खासा इजाफा हुआ है। इसे देखते हुए पांच और नए धार्मिक चैनलों के आने की तैयारी हो रही है। धार्मिक चैनलों पर अलग अलग संतों के प्रवचनों का खूब प्रसारण होता है जिनमें मुख्य रुप से यह बात होती है कि भगवान कौन है और पैसा मिट्टी है। प्रवचनों का सार यह होता है कि सब कुछ गुरु के चरणों में समर्पित कर दो।
लेख का शीर्षक था ‘चैनलों की चांदी...’ आप भी पढि़ए...पिछले तीन साल में भारत में धार्मिक चैनल के दर्शकों की संख्या में अच्छा खासा इजाफा हुआ है। इसे देखते हुए पांच और नए धार्मिक चैनलों के आने की तैयारी हो रही है। धार्मिक चैनलों पर अलग अलग संतों के प्रवचनों का खूब प्रसारण होता है जिनमें मुख्य रुप से यह बात होती है कि भगवान कौन है और पैसा मिट्टी है। प्रवचनों का सार यह होता है कि सब कुछ गुरु के चरणों में समर्पित कर दो।
संतों के सेवक अपने गुरु के ऑडियो-वीडियो टेप तैयार करते हैं और टीवी चैनलों से सौदा तय करते हैं। इसी तरह अलग अलग शहरों में प्रवचनों के आयोजक रहते हैं जो इन गुरुओं के प्रवचन धार्मिक टीवी चैनलों पर प्रसारित कराकर धन लेते हैं। ये प्रवचन पहले से रिकॉर्ड किए हुए भी हो सकते हैं और कई बार इनका सीधा प्रसारण भी कराया जाता है। इन प्रसारणों का लाभ यह होता है कि प्रवचन सुनने वाले भारी संख्या में आते हैं और पंडाल हमेशा भरे रहते हैं। आसाराम बापू अपने प्रवचनों का आयोजन खुद करते हैं। अब अन्य गुरु भी उनकी राह पर हैं। बड़े संतों के प्रवचन के कार्यक्रम तीन-तीन साल तक के लिए तय रहते हैं। आसाराम बापू के आश्रम की निगरानी रखने वाले अजय शाह बताते हैं कि सत्तर के दशक में आसाराम बापू को केवल गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में ही जाना जाता था लेकिन 1992 में उन्हें अपने प्रवचनों के प्रसारण के लिए सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर सुबह का समय मिला और उनका नाम घर-घर जाना जाने लगा।
नब्बे के दशक में सोनी और जी टीवी ने सुबह के समय प्रवचन का प्रसारण शुरू किया और इससे ही धर्म के धंधे में मौजूदा बदलाव आया। लेकिन इस सारे कारोबार को व्यवस्थित तौर पर तीन साल पहले आए ‘आस्था’ चैनल ने आगे बढ़ाया। देश का यह पहला चैनल है जो धार्मिक प्रवृति वाले लोगों के लिए था। इसके बाद ‘संस्कार’ चैनल आया और पिछले साल तीसरा ‘साधना’ चैनल आया। अब ‘जागरण’, ‘शक्ति’, ‘अहिंसा’, ‘संस्कृति’ और ‘सुदर्शन’ नाम के चैनल आने की तैयारी कर रहे हैं। इन चैनलों ने नए गुरुओं की कमाई की राह को आसान बनाया है। ‘साधना’ के राकेश गुप्ता कहते हैं कि ‘टीवी के आने से गुरुओं को अपनी इमेज खड़ी करने में बड़ी मदद मिली है। अब लोग उन्हें खूब जानने लगे हैं और प्रवचन आयोजक भी ज्यादा पैसे देने को तैयार हैं।‘
हालांकि कोई भी यह मानने को तैयार नहीं है कि वे धर्म का धंधा कर रहे हैं और माया कमा रहे हैं। ‘आस्था’ के मार्केटिंग प्रमुख कमल भक्तानी और ‘संस्कार’ के दिनेश काबरा धन की बात से इनकार करते हैं। राकेश गुप्ता कहते हैं कि उन्होंने टीवी चैनल इसलिए किए कि दूसरे दो चैनलों का व्यापारीकरण हो चुका था और वे एयर टाइम के लिए धन ले रहे थे। वे कहते हैं, कि ‘केवल हमारा चैनल ही नॉन प्राफिट संगठन है।‘
धार्मिक टीवी चैनलों पर प्राइम टाइम सुबह सात से नौ बजे तक का होता है और इस दौरान बीस मिनट के प्रवचन के लिए ‘आस्था’ और ‘संस्कार’ चैनल छह से दस हजार रुपए लेते हैं। नॉन प्राइम टाइम में यह दर लगभग तीन से साढ़े तीन हजार रुपए रहती है। सप्ताहांत में दर्शकों की संख्या बढ़ जाने से दरें भी बढ़ जाती है और 20 मिनट के लिए 12 हजार से 15 हजार रुपए लिए जाते हैं। ‘साधना’ की दरें कम हैं।
ईसाई मत का प्रसार करने करने वाले चैनल ‘गॉड टीवी’ और ‘जीवन’ हिंदू धार्मिक चैनलों की तरह ही काम कर रहे हैं। ‘गॉड टीवी’ को ब्रिटेन स्थित एंगल फाउंडेशन चलाता है। इस चैनल की आय में 40 फीसदी हिस्सेदारी विभिन्न चर्चों के कार्यक्रम प्रसारण की है जबकि शेष दान से आती है। दूसरे चैनल ‘जीवन’ को भारत के कैथोलिक चर्च ने प्रमोट किया है जिसका दावा है कि वह नैतिक मूल्यों के महत्व को समझाते हुए पारिवारिक कार्यक्रम प्रसारित करता है।
धार्मिक चैनलों के लिए प्रवचन और भजनों का प्रसारण मुनाफे का कारोबार है। ‘आस्था’ की शुरूआत तीन करोड़ रुपए के मामूली निवेश से हुई थी। प्रसारण उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि ऐसे चैनल लांच करना काफी आसान है और दस करोड़ रुपए के बजट में इसकी शुरूआत की जा सकती है। इन चैनलों को चलाने की लागत भी काफी कम बैठती है। ‘आस्था’ हर महीने सैटेलाइट के किराए के रुप में छह से सात लाख रुपए अदा करता है। सिंगापुर में ट्रांसमिशन स्टेशन चलाने के लिए पांच से छह लाख रुपए देने होते हैं। कर्मचारियों, कार्यालय और स्टूडियो पर 15/20 लाख रुपए की लागत बैठती है। इस तरह एक महीने में चैनल का खर्च 30/35 लाख रुपए आता है। इस खर्च के मुकाबले यह चैनल केवल गुरुओं के सहारे हर महीने 50 लाख रुपए कमा लेता है। चैनल की आय में गुरुओं का योगदान 60/70 फीसदी रहता है। विज्ञापन से केवल 20 फीसदी आय होती है। शेष आमदनी भजन एलबम आदि को प्रमोट करने, धार्मिक गतिविधियों को कवर करने और धार्मिक ट्रस्टों के प्रोफाइलिंग कारोबार से आती है।
धार्मिक टीवी चैनलों में आम नियम यह है कि छोटे गुरु को बड़े गुरु से ज्यादा पैसा अदा करना होता है। यह नियम लिखित नहीं है। इसका गणित इस पर निर्भर है कि छोटे गुरु के प्रवचनों में कितना दम है। अगर वह चैनल के प्रबंधन को जानता हो तो उसे कम पैसा देना पड़ता है। ‘आस्था’ चैनल के बीस मिनट के स्लॉट में गुरु को तीन मिनट अतिरिक्त मिलते हैं। गुरु चाहे तो इस समय को बेचकर विज्ञापनकर्ता से पैसा ले सकता है या फिर अपने उत्पादों को प्रमोट करने के लिए इसका उपयोग कर सकता है। मार्केटिंग के जानकार बताते हैं कि गुरुओं ने अपने प्रवचन के प्रायोजक ढूंढकर आय का नया स्त्रोत विकसित कर लिया है। ज्यादातर गुरु तीनों धार्मिक चैनलों पर आते हैं। लेकिन वे इस बात का खास ख्याल रखते हैं कि दो चैनलों पर एक साथ उनका कोई प्रवचन या कार्यक्रम प्रसारित न हो। लाइव प्रसारण के समय उनके सेवक प्रवचनों की रिकॉर्डिंग करते हैं और 20/20 मिनट के कैसेट खुद संपादित कर टीवी चैनलों को सौंपते हैं।
May 11, 2007
सुविधाभोगी संपादकों ने किया है पत्रकारिता का बेड़ा गर्क

May 4, 2007
बंद करो हिंदू, मुस्लिम की लड़ाई ब्लॉग वालों

May 3, 2007
जैश-ए-मोहम्मद, बाबूभाई कटारा और जार्ज बुश भाई भाई

समूची दुनिया का दारोगा या गुंडा...क्या कहूं...तय नहीं कर पा रहा हूं, ने अचानक मीडिया को एक तगड़ी रिपोर्ट दे दी कि भारत में कमोडिटी और रियॉलिटी बाजारों में जो पैसा लगा है, उसमें जैश-ए-मोहम्मद की बड़ी भूमिका है। यानी भारतीय बाजार में जैश ऐश कर रहा है और हमें बताने का काम अमरीका कर रहा है। अमरीका को पता चला, उसने जांच की और रिपोर्ट दे दी...और भारत की गुप्तचर एजेंसियां इस दौरान पूरी तरह सोती रही कि यह काम अमरीका कर ही रहा है तो हमें क्या जरुरत है काम करने की, हम तो रिपोर्ट आने पर जम्हाई लेकर उठने का प्रयास करेंगे वह भी तब जब सरकार यह मान लेगी कि जैश यहां ऐश कर रहा है या नहीं....सरकार बोलती रही कि सीधा विदेशी निवेश दिन दुगुना और रात चौगुना आ रहा है। सकल विकास दर यानी जीडीपी दस फीसदी पहुंच जाए तो अचरज मत करना मेरी प्रजा। आर्थिक विकास का ढोल हम पीटते रहे और निवेश के खिलाड़ी निकले जैश-ए-मोहम्मद वाले।
अमरीका हमारा इतना प्यारा दोस्त हो गया कि उसने अपने काम धाम छोड़कर हमारे लिए चाकरी करनी शुरू कर दी। हालांकि, अपने यहां तो पहले ही कुछ संत कह गए है कि अजगर करे न चाकरी... अब भाई बुश सा को अपने देश में तो कोई काम ही नहीं मिल पा रहा जिससे वे भारत की ही चिंता करने लगे हैं जाते जाते। हालांकि, बुश सा यह अच्छी तरह जानते हैं कि अमरीका में कहां कहां से आकर पैसा लगा है, बहुत पारदर्शी है वहां...कोई आंख मिचौली का खेल नहीं है वहां निवेश पर। अमरीका ने खुद किन किन देशों में किस किस के माध्यम से पैसा लगाया है, दूध के धुले की तरह सारी दुनिया के सामने हिसाब रख दिया है। हमाम में भी कपड़े पहनकर रहता है ताकि कोई उसे हमाम में नंगा नहीं कह सके। अमरीका हमारा इतना भला दोस्त है, बेचारे ने सारे कामधाम छोड़कर पहले यह काम किया कि भारत को बता दें कि भाई आपके यहां जो पैसा लग रहा है वह आतंककारियों का है। बेचारे ने ईरान की गर्दन तोड़ने तक का काम अधबीच में छोड़ दिया और पहले भारत की तरफ लपका। अपने पुराने लंगोटिया यार पाकिस्तान तक को नहीं बताया कि देखो मियां इन दिनों हम तुम्हारा कोई काम नहीं कर पाएंगे, पहले तुम्हारे दुश्मन भारत का भला करना है हमें तो रिपोर्ट देकर। भले जैश-ए-मोहम्मद के लोग तुम्हारे यहां रहकर काम कर रहे हों लेकिन भारत को बताना हमारे जैसे दादाओं के लिए जरुरी है। नहीं तो यार तुम लोग भिड़ोगे कैसे और हमारा फायदा होगा कैसे।
एक अमरीकी मित्र हमें भी मिल गए, पूछ लिया यार तुम लोग अपना काम धाम छोड़कर वाकई जग भलाई के काम कर रहे हो, तुम्हें कौनसा नागरिक सम्मान दूं समझ नहीं आ रहा। उस अमरीकन ने पहले इधर उधर ताका झांका और हमारे कान के पास फुसफूसाया....यार हमारी हालत काफी खराब है। डॉलर रोज कमजोर होता जा रहा है, क्रूड के दाम आसमान पहुंच रहे हैं। सोने में निवेश बढ़ रहा है। हमारी तो आर्थिक हालत बिगड़ रही है, मंदी से उबरे तो अपने लिए कुछ करें नहीं तो तुम्हारे लिए ही करेंगे। हमने कहा...तुम्हारा मतलब है मैं तो विधवा होउंगी लेकिन तुझे भी सुहागिन नहीं रहने दूंगी। वह बोला...नो...नो...हमने लताड़ा यानी हम दस फीसदी और चीन 11 फीसदी से ज्यादा की विकास दर हासिल कर रहा है तो तुम्हें सुहा नहीं रहा। तुम तो मंदी में बैठ ही गए, बस हर साल एक के बाद एक देश पर हमला कर वहां से अपने लिए पैसा जुटा लेते हो दादागिरी करने का। जैश-ए-मोहम्मद की रिपोर्ट देकर भारत के कमोडिटी, रियॉलिटी और इक्विटी बाजारों में मंदी के झटके देना चाहते हो ताकि आम आदमी का पैसा तुम्हारे देश के एफआईआई जो हमारे यहां काम कर रहे हैं, उनके बैंक खातों में चला जाए। लानत है ऐसी चिंता पर यार।
आज हमें अनेक लोगों के फोन आए कि बाजारों का क्या होगा यह तो सब उल्टा होने जा रहा है। हमारा कहना है कि भारतीय गुप्तचर एजेंसियां भी काफी सक्षम है और घबराने की कोई जरुरत नहीं है। अमरीका कब से यह पता लगाने का काम कर रहा है कि भारत में पैसा जैश-ए-मोहम्मद के लोग लगा रहे हैं, क्यों नहीं उसने भारत की एजेंसियों को साथ लिया और उन लोगों या कंपनियों के नाम क्यों नहीं घोषित किए जो भारतीय बाजार में पैसा लगा रहे हैं ऐसे आंतककारी संगठन का। क्या अमरीका यह जांच कार्य भारत में कर रहा था और यदि हां तो क्या उन्होंने ऐसी जांच से पहले भारत सरकार को जानकारी दी थी। खुद अमरीकन यदि भारत आए थे और ऐसी रिपोर्ट की पुष्टि कर रहे थे तो क्या उन्होंने अपने मकसद भारत सरकार को बताए थे। यदि चुपचाप पुष्टि कर रहे थे तो वे चोरों की तरह क्यों घुसे। अमरीका ने रिपोर्ट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकाने और निवेश करने वालों के नाम, पते क्यों नहीं जारी किए ताकि वहां हमला कर उन्हें नष्ट किया जा सके। जिन लोगों के पास भारत में इस संगठन का पैसा पहुंचा है, उन्हें लतियाया जा सके।
केवल कागजी रिपोर्ट पेश करना आसान है मिस्टर बुश। आपके दोस्त डिक चीनी ने तेल के धंधे में क्या क्या किया सारी दुनिया जानती है। क्या उन्होंने और उनकी कपंनी ने सारा काम और निवेश ईमानदारी से किया। अमरीकनों ने जहां जहां निवेश किए हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए। क्या सारा निवेश पूरी तरह ईमानदारी के साथ और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से किसी भी देश में गलत कार्यों के लिए निवेश नहीं किया है। मैं आतंककारियों और सत्ता में आकर लाइसेंसधारी आतंकी बनकर निवेश दोनों के खिलाफ हूं। हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भी कहा था कि शेयर बाजार में आतंककारी संगठनों का पैसा लगा है, लेकिन उन्होंने नाम बताएं इन लोगों की कंपनियों के और निवेशकों के। भारतीय बाजारों में भी यह चर्चा अकसर होती है कि नेताओं और प्रशासकों का दो नंबर का पैसा बाजारों में लगा हुआ है लेकिन कानून सबूत मांगता है और वह किसी के पास नहीं है, जब तक कि सब कुछ पकड़ा न जाए कुछ नहीं हो सकता। निवेशक तो यहां तक कहते हैं कि शेयर बाजार, कमोडिटी बाजारों में आने वाले तगड़े झटके खुद सरकार में बैठे मंत्रियों की मिलीभगत से आते हैं। इनसाइडर बिजनैस किया जाता है, लेकिन सबूत न होने से कुछ नहीं हो पाता। यहां हम एक बात कमोडिटी बाजार की करते हैं सरकार मानती है कि दलहन के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं और इन्हें सस्ता करने के लिए वायदा रोकना जरुरी है तो लोग कहने लगे हैं कि जब तुअर और उड़द के वायदा कारोबार पर रोक लग गई तो चने पर रोक क्यों नहीं लगी। चने पर रोक न लगने पर कई कारोबारियों का कहना था कि इसमें दक्षिण भारत के बड़े बड़े सटोरिएं शामिल हैं और इस पर कभी रोक नहीं लग सकती जब तक उनकी पोजीशन है। लोग कह रहे हैं कि मानसून में सीमेंट पर एक्साइज ड्यूटी कम हो जाएगी क्योंकि दक्षिण भारत की एक बड़ी सीमेंट कंपनी में कुछ सत्ताधारियों का पैसा लगा है और कंपनी को एक्साइज बढ़ने से बड़ा मुनाफा नहीं हो रहा है। ये बातें कहां से पैदा होती है।
जैश के साथ सत्ता में कर रहे ऐश वालों के पैसे भी आतंकियों के पैसे से कम नहीं है। खैर अच्छी बात तब होगी, जब हमारी सरकार ईमानदारी के साथ आतंककारियों और भ्रष्ट नेताओं व नौकरशाहों के पैसे को ढूंढकर इन्हें सजा दे और बाजारों को अधिक पारदर्शी बनाएं। भारतीय संविधान की शपथ लेकर संसद में बैठने वाले बाबूभाई कटारा और सवाल पूछने के लिए धन लेने वाले सांसद जब देश को चला रहे हो तो कुछ भी हो सकता है। सरकार में बैठे लोग ऐसे भ्रष्ट सांसदों के चरित्र और कामकाज का पता नहीं लगा पाई तो मुझे मुशिकल लगता है कि वह जैश के पैसे को खोज पाएगी।
अमरीका हमारा इतना प्यारा दोस्त हो गया कि उसने अपने काम धाम छोड़कर हमारे लिए चाकरी करनी शुरू कर दी। हालांकि, अपने यहां तो पहले ही कुछ संत कह गए है कि अजगर करे न चाकरी... अब भाई बुश सा को अपने देश में तो कोई काम ही नहीं मिल पा रहा जिससे वे भारत की ही चिंता करने लगे हैं जाते जाते। हालांकि, बुश सा यह अच्छी तरह जानते हैं कि अमरीका में कहां कहां से आकर पैसा लगा है, बहुत पारदर्शी है वहां...कोई आंख मिचौली का खेल नहीं है वहां निवेश पर। अमरीका ने खुद किन किन देशों में किस किस के माध्यम से पैसा लगाया है, दूध के धुले की तरह सारी दुनिया के सामने हिसाब रख दिया है। हमाम में भी कपड़े पहनकर रहता है ताकि कोई उसे हमाम में नंगा नहीं कह सके। अमरीका हमारा इतना भला दोस्त है, बेचारे ने सारे कामधाम छोड़कर पहले यह काम किया कि भारत को बता दें कि भाई आपके यहां जो पैसा लग रहा है वह आतंककारियों का है। बेचारे ने ईरान की गर्दन तोड़ने तक का काम अधबीच में छोड़ दिया और पहले भारत की तरफ लपका। अपने पुराने लंगोटिया यार पाकिस्तान तक को नहीं बताया कि देखो मियां इन दिनों हम तुम्हारा कोई काम नहीं कर पाएंगे, पहले तुम्हारे दुश्मन भारत का भला करना है हमें तो रिपोर्ट देकर। भले जैश-ए-मोहम्मद के लोग तुम्हारे यहां रहकर काम कर रहे हों लेकिन भारत को बताना हमारे जैसे दादाओं के लिए जरुरी है। नहीं तो यार तुम लोग भिड़ोगे कैसे और हमारा फायदा होगा कैसे।
एक अमरीकी मित्र हमें भी मिल गए, पूछ लिया यार तुम लोग अपना काम धाम छोड़कर वाकई जग भलाई के काम कर रहे हो, तुम्हें कौनसा नागरिक सम्मान दूं समझ नहीं आ रहा। उस अमरीकन ने पहले इधर उधर ताका झांका और हमारे कान के पास फुसफूसाया....यार हमारी हालत काफी खराब है। डॉलर रोज कमजोर होता जा रहा है, क्रूड के दाम आसमान पहुंच रहे हैं। सोने में निवेश बढ़ रहा है। हमारी तो आर्थिक हालत बिगड़ रही है, मंदी से उबरे तो अपने लिए कुछ करें नहीं तो तुम्हारे लिए ही करेंगे। हमने कहा...तुम्हारा मतलब है मैं तो विधवा होउंगी लेकिन तुझे भी सुहागिन नहीं रहने दूंगी। वह बोला...नो...नो...हमने लताड़ा यानी हम दस फीसदी और चीन 11 फीसदी से ज्यादा की विकास दर हासिल कर रहा है तो तुम्हें सुहा नहीं रहा। तुम तो मंदी में बैठ ही गए, बस हर साल एक के बाद एक देश पर हमला कर वहां से अपने लिए पैसा जुटा लेते हो दादागिरी करने का। जैश-ए-मोहम्मद की रिपोर्ट देकर भारत के कमोडिटी, रियॉलिटी और इक्विटी बाजारों में मंदी के झटके देना चाहते हो ताकि आम आदमी का पैसा तुम्हारे देश के एफआईआई जो हमारे यहां काम कर रहे हैं, उनके बैंक खातों में चला जाए। लानत है ऐसी चिंता पर यार।
आज हमें अनेक लोगों के फोन आए कि बाजारों का क्या होगा यह तो सब उल्टा होने जा रहा है। हमारा कहना है कि भारतीय गुप्तचर एजेंसियां भी काफी सक्षम है और घबराने की कोई जरुरत नहीं है। अमरीका कब से यह पता लगाने का काम कर रहा है कि भारत में पैसा जैश-ए-मोहम्मद के लोग लगा रहे हैं, क्यों नहीं उसने भारत की एजेंसियों को साथ लिया और उन लोगों या कंपनियों के नाम क्यों नहीं घोषित किए जो भारतीय बाजार में पैसा लगा रहे हैं ऐसे आंतककारी संगठन का। क्या अमरीका यह जांच कार्य भारत में कर रहा था और यदि हां तो क्या उन्होंने ऐसी जांच से पहले भारत सरकार को जानकारी दी थी। खुद अमरीकन यदि भारत आए थे और ऐसी रिपोर्ट की पुष्टि कर रहे थे तो क्या उन्होंने अपने मकसद भारत सरकार को बताए थे। यदि चुपचाप पुष्टि कर रहे थे तो वे चोरों की तरह क्यों घुसे। अमरीका ने रिपोर्ट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकाने और निवेश करने वालों के नाम, पते क्यों नहीं जारी किए ताकि वहां हमला कर उन्हें नष्ट किया जा सके। जिन लोगों के पास भारत में इस संगठन का पैसा पहुंचा है, उन्हें लतियाया जा सके।
केवल कागजी रिपोर्ट पेश करना आसान है मिस्टर बुश। आपके दोस्त डिक चीनी ने तेल के धंधे में क्या क्या किया सारी दुनिया जानती है। क्या उन्होंने और उनकी कपंनी ने सारा काम और निवेश ईमानदारी से किया। अमरीकनों ने जहां जहां निवेश किए हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए। क्या सारा निवेश पूरी तरह ईमानदारी के साथ और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से किसी भी देश में गलत कार्यों के लिए निवेश नहीं किया है। मैं आतंककारियों और सत्ता में आकर लाइसेंसधारी आतंकी बनकर निवेश दोनों के खिलाफ हूं। हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भी कहा था कि शेयर बाजार में आतंककारी संगठनों का पैसा लगा है, लेकिन उन्होंने नाम बताएं इन लोगों की कंपनियों के और निवेशकों के। भारतीय बाजारों में भी यह चर्चा अकसर होती है कि नेताओं और प्रशासकों का दो नंबर का पैसा बाजारों में लगा हुआ है लेकिन कानून सबूत मांगता है और वह किसी के पास नहीं है, जब तक कि सब कुछ पकड़ा न जाए कुछ नहीं हो सकता। निवेशक तो यहां तक कहते हैं कि शेयर बाजार, कमोडिटी बाजारों में आने वाले तगड़े झटके खुद सरकार में बैठे मंत्रियों की मिलीभगत से आते हैं। इनसाइडर बिजनैस किया जाता है, लेकिन सबूत न होने से कुछ नहीं हो पाता। यहां हम एक बात कमोडिटी बाजार की करते हैं सरकार मानती है कि दलहन के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं और इन्हें सस्ता करने के लिए वायदा रोकना जरुरी है तो लोग कहने लगे हैं कि जब तुअर और उड़द के वायदा कारोबार पर रोक लग गई तो चने पर रोक क्यों नहीं लगी। चने पर रोक न लगने पर कई कारोबारियों का कहना था कि इसमें दक्षिण भारत के बड़े बड़े सटोरिएं शामिल हैं और इस पर कभी रोक नहीं लग सकती जब तक उनकी पोजीशन है। लोग कह रहे हैं कि मानसून में सीमेंट पर एक्साइज ड्यूटी कम हो जाएगी क्योंकि दक्षिण भारत की एक बड़ी सीमेंट कंपनी में कुछ सत्ताधारियों का पैसा लगा है और कंपनी को एक्साइज बढ़ने से बड़ा मुनाफा नहीं हो रहा है। ये बातें कहां से पैदा होती है।
जैश के साथ सत्ता में कर रहे ऐश वालों के पैसे भी आतंकियों के पैसे से कम नहीं है। खैर अच्छी बात तब होगी, जब हमारी सरकार ईमानदारी के साथ आतंककारियों और भ्रष्ट नेताओं व नौकरशाहों के पैसे को ढूंढकर इन्हें सजा दे और बाजारों को अधिक पारदर्शी बनाएं। भारतीय संविधान की शपथ लेकर संसद में बैठने वाले बाबूभाई कटारा और सवाल पूछने के लिए धन लेने वाले सांसद जब देश को चला रहे हो तो कुछ भी हो सकता है। सरकार में बैठे लोग ऐसे भ्रष्ट सांसदों के चरित्र और कामकाज का पता नहीं लगा पाई तो मुझे मुशिकल लगता है कि वह जैश के पैसे को खोज पाएगी।
May 1, 2007
रेजीमेंट बनानी है लेकिन सेना में गए बगैर !

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कहा था कि सेना में गुजरात रेजीमेंट होनी चाहिए। लेकिन जब गुजराती युवाओं में सेना के प्रति मोह ही नहीं है तो कैसी रेजीमेंट और कैसी बटालियन। इस सच को सभी जानते हैं कि गुजराती परंपरागत रुप से योद्धा जैसे स्वभाव के नहीं हैं, बल्कि कारोबार करने वाले हैं। गुजरात की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो तटीय इलाकों ने यहां की जनता को एक योद्धा नहीं बनाकर कारोबारी बना दिया। गुजरात की सीमाएं प्राकृतिक रुप से सुरक्षित होने से यहां की जनता योद्धा वाले स्वभाव की नहीं है। राज्य के कच्छ जिले के 18 हजार वर्ग किलोमीटर में कच्छ का रण है जो इसे बेहद सुरक्षित बनाती है। लेकिन दीर्घकाल की दृष्टि से देखा जाए तो गुजरात की जनता में एक योद्धा का स्वभाव पैदा करना जरुरी है। इस राज्य के उत्तर की ओर चार हजार किलोमीटर तक रुस, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, किर्दीस्तान और कजाकिस्तान जैसे देश हैं। पश्चिम में अरब सागर से लेकर अटलांटिक महासागर तक 11 हजार किलोमीटर के क्षेत्र में ऐसे अनेक देश हैं जहां एक बेहद जुनूनी कौम रहती है। इन देशों में से एक मंगोलिया में चंगेज खान को राष्ट्रीय नायक माना जाता है। उजेबेकिस्तान ने सोवियत संघ से अलग होते ही लेनिन और स्टालिन के बजाय तैमूर लंग को अपना महानायक घोषित किया। ग्रीस आज भी एलेक्जैंडर द ग्रेट को अपना महानायक मानता है। भारतीय राज्यों की बात करें तो राजस्थान में महाराणा प्रताप, पंजाब में गुरु गोविंद सिंह, महाराष्ट्र में शिवाजी को पूजा जाता है लेकिन गुजरात में वहां के महानायक सिद्धराज जयसिंह इस सम्मान से वंचित है। सिद्धराज जयसिंह के समय गुजरात को एक देश की तरह दक्षिण में कोंकण, उत्तर में अजमेर व सिंध, पूर्व में ग्वालियर तक फैला दिया गया था।
राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने वर्ष 2005 में जयपुर में कहा था कि देश में सभी नागरिकों के लिए सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। इससे युवा पीढ़ी में देश प्रेम और अनुशासन बढ़ेगा। विश्व के अनेक राष्ट्रों में सैन्य प्रशिक्षण जरुरी है और वहां कोई भी नागरिक इस तरह के प्रशिक्षण से इनकार नहीं कर सकता। गुजराती युवाओं को यदि गुजरात रेजीमेंट बनने का गौरव अपने राज्य को दिलाना है तो खुद को इसके लिए तैयार करना होगा। साथ ही अपने परिजनों को यह समझाना होगा कि सेना में जाना गौरव की बात है। अन्य नौकरियों या कारोबार की तरह सेना को भी अपनी वरीयता सूची में शामिल करना होगा। लेकिन यहां मैं एक बेहद कड़वी बात कहना चाहूंगा कि तम्बाकू, मावा, गुटखा और शराब के सहारे जीने वाले गुजराती युवाओं को इनका सेवन छोड़ने के अलावा पान की दुकानों पर फिजूल की गप्पबाजी से बाज आना होगा तभी भारतीय सेना में गुजराती रेजीमेंट बनेगी और गुजरात का गौरव बढ़ेगा।
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