कर भला तो हो भला, यह कहावत मुझे नहीं लगता कि किसी ने सुनी नहीं होगी। हां, यदि किसी ने न सुनी हो तो अब सुन ले या पढ़ ले। यह कहावत उन लोगों पर अब लागू नहीं होती जो दूसरे का भला करना चाहते हैं। फिर चाहे भलाई इंसानियत के तौर पर की जा रही हो या फिर स्वार्थ के वशीभूत होकर। लेकिन यह कहावत भारतीय मीडिया खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम पर तो पूरी तरह लागू होती है। देश का इलेक्ट्रॉनिक माध्यम इतनी ज्यादा भलाई के काम कर रहा है कि पिछले दिनों उसके एक घराने पर मुंबई में हमला हो गया। हालांकि, इस हमले को प्रैस पर हमला, लोकतंत्र पर हमला, आजादी पर हमला और पता नहीं कौन कौन सा हमला बताया गया। हमला बोले भी क्यों नहीं, आखिर टीवी चैनल सभी का भला करने में लगा है। अपराध को इस तरह परोसा जा रहा है कि जैसे हमारा अगला लक्ष्य कृषि प्रधान देश के बजाय अपराध प्रधान देश हो। जब देश अपराध प्रधान देश बन जाएगा तो इनका भी भला होगा क्योंकि बढ़ती टीआरपी इनका भी भला करेगी। कर भला हो भला...। अपराध प्रधान देश्ा बनाने से पहले ये चैनल रोज रात में यह बताते हैं कि आज कौन कौन से अपराध हुए और कैसे हुए। इन अपराधों में ऐसी कौनसी खामियां रह गई कि अपराधी पकड़े गए। अरे भई वैसे आप जो बताते हैं उससे अगले अपराधी को अपने दोस्त अपराधी से यह तो सीखने को मिल ही जाता है कि अपराध करते समय उन गलतियों को न दोहराया जाए। लेकिन अब अपने कार्यक्रमों में यह भी बताना चाहिए कि एक अपराध कैसे करें और किन किन गलतियों से बचे ताकि पुलिस के हाथ नहीं केवल मीडिया के हाथ अपराधी और स्टोरी लग सके। पुलिस बेचारी ठन ठन पाल मदन गोपाल की तरह टीवी ही देखती रहे और अपराधी एंकर के साथ खड़ा होकर सीना चौड़ा कर अपने कारनामे के बारे में बताएं और एंकर पूछता जाए...वहां माहौल कैसा था। कितनी पब्लिक थी..जब आपने बलात्कार व हत्या की तो लोगों की क्या प्रतिक्रिया थी। बलात्कार करने से पहले आपने अपने को किस तरह तैयार किया..बलात्कार के बाद जब हत्या की तो किस तरह आपने अपने दिल की धड़कनों पर काबू पाया...अगला अपराध कब आदि आदि। इस पर देश भर से हजारों मूर्ख एसएमएस के जरिये यह भी बता रहे हैं कि क्या यह नए ढंग का अपराध है या नहीं। एंकर बोल रहा है कि हमारे पास पांच लाख से ज्यादा एसएमएस आए हैं और 60 फीसदी का कहना है कि यह नए ढंग का यूनिक अपराध है। क्या कल आप बाल बलात्कार देखना चाहेंगे....हमें एसएमएस करें...हां के लिए ए....नहीं के लिए....बी...अपना मैसेज टाइप करें और भेजें 0000 पर। टीवी चैनलों पर वैसे जो लोग ऐसे कार्यक्रम पेश करते हैं वे भी किसी अपराधी की शक्ल से कम नहीं लगते। इस तरह के हाव भाव और चेहरा मानों सीधे यरवडा जेल से चले आ रहे हैं कार्यक्रम पेश करने। कुछ लोग भूत बंगला जैसे कार्यक्रम से लेकर भूतों से मोबाइल तक पर बात कराते हैं। जै हो....जै हो...देश फिर से सांप और मदारियों के युग में लौट रहा है। अंधविश्वास की ओर हम आगे बढ़ रहे हैं...हमें राजनीतिक और आर्थिक महासत्ता बनकर करना क्या है। संयुक्त राष्ट्र सभा में हमें चीन, फ्रांस, रुस, ब्रिटेन, अमरीका की तरह वीटो पावर जैसी ताकत लेकर करना क्या है। क्यों हम एशिया की सबसे बड़ी ताकत बने। हमें तो अपराध प्रधान देश बनना है, हमें चाहिए कूल्हें हिलाने और कमरिया लचके से लेकर भूत, बार डांसरों के जलवे, कुकर्मों की कहानी जैसे समाचार। मजा आता है यार...जब किसी बार डांसर के जलवे देखते हैं तो लार टपकती है, यह कैसे और कब मिलेगी। अरे टीवी वालों इसका फोन नंबर और रेट दो बता दो। पैसे अरेंज करने में लग जाएं ताकि। मॉडल देह व्यवसाय में शामिल...यारों नंबर और रेट और डेट क्यों नहीं बता देते कि यह कब तक मिल सकेगी। लानत है ऐसे समाचारों पर।मुझे एक पुराना विज्ञापन याद है जिसमें कहा गया था कि चाहिए एक संपादक, वेतन दो सूखी रोटियां और ठंडा पानी। या फिर जो कहा गया था कि सफल संपादक वह है जो हर पखवाड़े शहर के चौराहे पर पिटे। भारतीय इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में सब दौड़ रहे हैं कि हे भगवान मेरी टीआरपी कैसे भी बढ़ जाए। भले ही इसके लिए कभी स्टूडियो में लाकर किसी की हत्या कर उसके विजुअल भी दिखाना पड़े तो हम दिखाएंगे। चौबीस घंटे....हॉय चौबीस घंटे....ले लो न्यूज...जबरदस्ती देख लो...लेकिन टीआरपी बढ़ा दो। टीवी चैनलों पर एक विज्ञापन चलाते रहना चाहिए कि यदि आप बलात्कार करने वाले हैं, या हत्या अथवा नंगा नाच तो प्लीज हमारे स्टूडियो में आकर करें आपको पुलिस नहीं पकड़ेगी और हम इसे समूचे राष्ट्र के सामने पेश करेंगे ताकि दूसरे लोग सब लाइव देख सके एवं जो हमारी टीआरपी बढ़ेगी उससे हमारा कल्याण होगा। आइए...आइए...बलात्कार व हत्या के लिए यहां पधारे...दूसरे चैनल पर नहीं। सिर्फ इसी चैनल पर। एनडीटीवी ने डॉयल 100 जैसा कार्यक्रम बंद कर एक मिसाल पेश की है लेकिन दूसरे चैनल आपराधिक न्यूज को इतना बढ़ा चढ़ाकर और नाटय रुपांतरण कर पेश करते हैं कि लगता है कि सब कुछ मीडिया ही करवा रहा है। मुझे लगता है यह बकवास बंद होनी चाहिए और इस पर बहस होनी चाहिए कि ऐसे कार्यक्रम चलते रहने चाहिए या नहीं। कही दीर्घकाल में समाज पर विपरीत असर तो नहीं डालेंगे। यदि असर डालते हैं तो इसका नुकसान मीडिया से वसूल करना चाहिए। आज भारत को दुनिया में आर्थिक और राजनीतिक महासत्ता के रुप में स्थापित करना है तो हमें न्यूज और कार्यक्रम भी वैसे ही लाने होंगे जिनसे समाज के हर तबके का भला हो। वैसे अपराध के अलावा सेलिब्रिटी को लेकर भी काफी कुछ किया जा सकता है जिससे टीआरपी और बढ़ेगी। मसलन यह नहीं बताएं कि सेलिब्रिटी ने क्या खाया, क्या पीया, बुखार आया या उतरा। बल्कि यह भी बता सकते हैं जब ज्यादा न्यूज न हो तब सर/मैडम यही बात दें कि आज आपने कौनसे कलर की चड्डी पहनी है और फिर दिन भर यही लाइव चलेगा कि फलां हस्ती ने आज इस रंग की चड्डी पहनी है और इसके कारण्ा क्या हैं। एक ज्योतिष महाराज आकर बोलेंगे इस कलर की चड्डी से इन्हें ये ये लाभ हैं। इनका भविष्य यह है। टीआरपी प्रणाली को पूरी तरह बंद कर दिया जाना चाहिए, बलिक बेहतर और क्वॉलिटी की खबरों के आधार पर इनकी रेटिंग होनी चाहिए। ये कहते हैं कि जनता यही देखना चाहती है जो हम दिखा रहे हैं, जनता तो नंग धड़ग एंकर देखना चाहती है, कर देना सबको नंगा। बैठा देना कुर्सी के बजाय टेबल पर, सब दिखेगा और टीआरपी बढ़ेगी। प्रेस की आजादी के नाम पर जो बेकार का हल्ला मचाया गया वह प्रेस की आजादी पर हमला नहीं था। ढोंग कर रहे हैं, ऐसे लोग जो इसे हमला बता रहे हैं। कभी कभी तो लगता है ये लोग न्यूज पढ़ रहे हैं या चीख चीख कर हल्ला मचा रहे हैं। हथौड़ा मार रहे हैं दर्शकों के सिर पर। धीरे और शालीन तरीके से पढ़ो न खबरें। ये लोग जो हथौंडा मार ब्रांड खबरें सुना रहे हैं वह आम जनता पर हमला है और जनता से ऊपर कोई स्तंभ नहीं, भले वह चौथा स्तंभ पत्रकारिता ही क्यों नहीं हो।











































